स्मृतियाँ स्नो फ़ॉल सी
सरिता अंजनी सरसस्मृतियाँ स्नो फ़ॉल सी हैं
गिरती हैं और जम जाती हैं
बर्फ़ सी . . .
रेत के मानिंद फिसल चुका अतीत
अपने वर्तमान में कितना कड़वा होता है
स्मृतियों में उतना ही सुंदर।
कोरोना का क़हर और युद्ध की विभीषिका के बीच
वक़्त ने सदमे भरी एक गहरी साँस ली
एकाएक पेड़ों के पत्ते झुलस गए।
पक्षियों को नहीं पता
यूक्रेन रूस युद्ध क्यों, क्या, कैसे?
पर उन्हें जीवन में आए संकट पता है।
पृथ्वी के शून्य हृदय में
गूँजती भयानक चीखें
ग़रीबों की उम्मीदें छतों पर पड़े कपड़ों की तरह
धूप उतरते ही बटोर ली गईं।
तोपों की भयानक गर्जना में
पेड़ों की कोंपलें कुम्हला गईं
पूरी की पूरी क़ौम एक अँधेरे जंगल में खो गई है
इन अँधेरे जंगलों में सुखों की पतली पगडंडियाँ
कहाँ ढूँढ़े?
स्मृतियों की आँखों में इतिहास पानी की तरह तैर रहा
मीठी यादों के झरते गुलमोहर के बीच
वर्तमान का यथार्थ छलनी कर देता है
युद्ध मानवता के माथे पर कलंक है . . .
वक़्त कायनात के आँसुओं का रंग देख रहा
और
बटोर रहा था सदी की आँखों से झरते एक-एक काँटे को
समय गांधारी की तरह आँख पर पट्टी बाँध सोच रहा
युद्ध क्या इंसानियत से बड़ा है?