प्रेम की पीड़ा
सरिता अंजनी सरसनफ़रतों की साज़िश से
जब कुतरा जाने लगा
मेरे प्रेम का पंख
मैंने यादों के वितान से एक जुगनू निकाल
टाँक दिया उदासी के माथे पर
प्रेम में उपजी पीड़ा नितांत अकेली होती है
आँखों के नमकीन पानी से
पीड़ा के खेत लहलहा उठते हैं
एक दिन मेरे मौन पर
भारी पड़ गया था एक आँसू
मैंने वो आँसू हथेली पर लिया
और सींच डाली अपनी भाग्य रेखा
क़लम जो कि मेरे ज़िन्दा होने का सबूत है
मेरी पीड़ाओं में डूब उसकी स्याही गाढ़ी हो जाती है
और आँसुओं से डूबे
हृदय के खेत में
पीड़ा रोप दी जाती है
लहलहाते खेत से निकलती हैं अनगिनत पीड़ाएँ
फिर भी पीड़ाओं पर भारी पड़ती है
मेरी एक मुस्कान
जिसे मैं हर सुबह सूरज के माथे पर लगाती हूँ
इस उम्मीद में
कि नफ़रतों का दर्प टूटता रहे
रात के घनघोर अँधेरे को चीरती हुई रोशनी
जब ब्रह्मांड को प्रकाशित करती है
सूरज के माथे पर
मेरी मुस्कान का टीका
पूरे ब्रह्मांड में छिटक जाता है।