प्रेम के जंगल

15-12-2022

प्रेम के जंगल

सरिता अंजनी सरस (अंक: 219, दिसंबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

कुछ कहे जाने 
कुछ सुने जाने से
बेहतर है
चुन लिया जाए इन दोनों के बीच का ख़ालीपन
 
प्रेम के जंगल उगाए जाएँ
घने जंगल
नफ़रतों के लिए स्पेस ना हो
 
छूत-अछूत, स्त्री-पुरुष
अमीर–ग़रीब . . .
सारी खाई मिट जाएगी
अगर बोया जाए प्रेम . . .
 
मैं जब भी समस्याओं का समाधान खोजती
मुझे दो ही बातें समझ आतीं
एक प्रेम
दूसरा मौन . . . 
 
तीसरी आँख
अपने ही भीतर इतनी गहरी उतर जाए
कि शरीर धरती बन जाए . . . 
और फिर उग आए प्रेम . . . 
 
एक पहाड़ काटा जाए
एक आकाश उगाया जाए
शर्त इतनी है
अहम काटा जाए, उगाया जाए “प्रेम“
 सरिता अंजनी 'सरस'

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