सिर्फ़-तुम

01-12-2022

सिर्फ़-तुम

शशि कांत श्रीवास्तव (अंक: 218, दिसंबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

वो तुम ही थी
उस पार से प्रिये, 
जब आवाज़ दी थी कभी तुमने, 
थी . . . 
उस दिन भी क़रीब मेरे—पर 
क्यों ना सुनाई दी वो मुझे, 
देखो तो ज़रा, 
आँखें तो खोलो . . . 
केवल . . . 
मैं और सिर्फ़ तुम ही हैं यहाँ 
इस नश्वर संसार में, 
क्योंकि . . . 
सारे तो साथ छोड़ कर जा चुके हैं 
एक एक करके . . . उस पार प्रिये, 
वो तुम ही थी, 
पर . . . 
अब हूँ अकेला तन और मन से 
ढो रहा हूँ उम्मीदों के बोझ को, 
इस जर्जर मरे हुए जिस्म के ऊपर, 
कि तुम आओगी एक दिन लेने मुझे, 
उस पार से प्रिये . . .॥

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