जीवन की साँझ
शशि कांत श्रीवास्तवजीवन की इस साँझ में—प्रिये
रह जायेंगे सिर्फ़ . . .
हम और तुम . . .
बनकर साथी एक दूजे के प्रिये,
जीवन की इस साँझ में . . .
कोई भी नहीं है संग हमारे
है सभी कोई मस्त अपने में प्यारे
जीने दो उनको
अपनी ज़िन्दगी अपने तरीक़े से,
हमने तो जी ली है अपनी ज़िन्दगी,
जीवन की इस साँझ में—प्रिये
रह जायेंगे सिर्फ़ हम और तुम-प्रिये,
आओ . . . चलो . . . चलें . . .
उम्र की इस दहलीज़ पर
अपने काँपते हाथों से
फिर से तुम्हें सजा सँवार दूँ प्रिये,
जैसे पहले तुम सजती सँवरती थी
सिर्फ़ हमारे . . . हमारे लिए प्रिये . . .
जीवन की इस साँझ में—प्रिये॥