एक दीया जलायें
शशि कांत श्रीवास्तवआओ . . .!
चलो . . .,
चलें . . .,
हम सब मिलकर
एक दीया जलायें,
मन में अपने,
आशा और विश्वास का,
और एक उम्मीद का,
कि . . .,
दूर होगा अँधेरा गगन का,
जो-छाया हुआ है मन में
हमारे,
ढक रखा है उजाले को
आग़ोश में अपने,
वहीं धुँधली सी हो गई हैं
रश्मियाँ चमकते हुए सूर्य की,
आओ चलो चलें . . .,
हम सब मिलकर,
जलायें दीया एक उसके लिए,
जो हो जायें नष्ट सदा के लिए
इस जलते दीये की रोशनी में,
छँट जाये अँधेरा सदा के लिए
और एक नया सवेरा आ जाये,
आओ चलो चलें हम सब मिलकर,
जलायें दीया एक उसके लिए . . .॥