स्वीकार करना तुम

01-02-2025

स्वीकार करना तुम

डॉ. मंजू कोगियाल (अंक: 270, फरवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

जिस रूप में तुमको मिलूँ प्रिये! 
स्वीकार मुझे तुम कर लेना। 
हर रोज़ मिलूँ या बरसों में 
स्वीकार मुझे तुम कर लेना। 
बन कर आऊँ यदि मैं बसन्त
सिंगार तुम अपना कर लेना, 
यदि बदरा की धार बनूँ तो
मलमल बदन नहा लेना। 
जिस भाव-विभाव में मिलूँ प्रिये! 
स्वीकार मुझे तुम कर लेना। 
संवाद करूँ या मौन रहूँ 
फिर भी आवाज़ लगा लेना। 
आ जाये कभी गर रुसवाई
दर्पण के सम्मुख जाना तुम, 
बिम्ब मेरा तेरी छवि में 
मिल जाये गले लगा लेना। 
पथिक बनो गर जीवन पथ के
साथ मुझे भी ले लेना, 
होना जब तुम श्रांत-क्लांत तो 
सिरहाने मुझे लगा लेना। 
थक हार कभी यदि तुम जाना, 
तो लाठी मुझे बना लेना, 
मज़बूत रहोगे जीवन भर, 
यह बात मेरी गठिया लेना। 

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