जीवन की गोधूली में कौतूहल से तुम आए

01-02-2024

जीवन की गोधूली में कौतूहल से तुम आए

डॉ. मंजू कोगियाल (अंक: 246, फरवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

ज़िन्दगी तू है कितनी ख़ास
आज लगने लगी मुझे। 
पाकर स्नेह बंधन तुम्हारा
जीना चाहती हूँ मैं भी खुलकर॥
 
बंधन नहीं है ये
तेरा दुलार सा है। 
मानो ईश्वर का कोई
उपहार सा है॥
 
पंख दिए हैं तुमने मुझको
उड़ने को इस विस्तृत नभ में। 
होगी धरती व्योम भी मेरा
आने वाले हर एक कल में॥
 
भाव बिखरे हैं इसमें असीम 
सपने दिए तुमने नवीन। 
पल पल चुनती हूँ मैं जिनको
प्रतिपल बुनती हूँ मैं इनको॥
 
सच कहूँ ज़िन्दगी तो पापा का लाड़
और माँ का दुलार है तुझमें। 
बचपन की शरारत और
यौवन की चंचलता है तुझमें॥
 
आशा हो तुम परिभाषा तुम 
करते पूरी हर अभिलाषा तुम। 
जब भी खोलूँ मैं अधरों को
शब्द भी तुम और भाव भी तुम॥
 
तू कहती मेरे साथ चलेगी
जब तक साथ चलूँगी मैं। 
जन्म जन्म भर साथ रहेगी
जीवन की चिरसंगी बनकर॥
 
ज़िन्दगी तू है कितनी ख़ास
आज लगने लगी मुझे॥
पाकर स्नेह बंधन तुम्हारा
जीना चाहती हूँ मैं भी खुलकर॥

1 टिप्पणियाँ

  • 26 Jan, 2024 11:09 AM

    बहुत सुन्दर भाव बहुत सहज शैली। उत्तम सृजन के लिए बधाई

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