संशय है
डॉ. अवनीश सिंह चौहानसंशय है
लेखक पर
पड़े न कोई छाप
पुरखों की सब धरीं किताबों
को पढ़-पढ़ कर
भाषा को कुछ नमक-मिर्च से
चटक बना कर
विद्या रटे
बने योगी के
भीतर पाप
राह कठिन को सरल बनाये
ख़ेमेबाज़ी
जल्दी में सब हार न जाएँ
जीती बाज़ी
क्षण-क्षण आज
समय का
उठता-गिरता ताप
शोधों की गति घूम रही
चक्कर पर चक्कर
अंधा पुरस्कार
मर-मिटता है शोहरत पर
संशय है
ये साधक
सिद्ध करेंगे जाप।