गेट लॉस्ट
डॉ. अवनीश सिंह चौहान
एक निजी महाविद्यालय में आंतरिक परीक्षाएँ चल रही थीं। एक दिन परीक्षा-कक्षों में कुछ छात्र-छात्राएँ बहुत ही असहज हो रहे थे। कारण यह कि उन्हें जो प्रश्न-पत्र दिया गया, वह उस दिन ‘शेडयूल्ड’ न हो कर, किसी और दिन होना था। हड़बड़ाहट में ‘एग्ज़ाम सेल’ में सही प्रश्न-पत्र खोजे जाने की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई, जिसमें लगभग एक घण्टा और लग गया।
उस महाविद्यालय के प्राचार्य इस घटना से बहुत क्षुब्ध हुए। वे प्राध्यापिका मिस प्रभा के साथ मौक़ा मुआयना करने परीक्षा-स्थल पर गये। कुछ देर बाद वे अपने ऑफ़िस लौटे। उन्होंने परीक्षा प्रभारी को अपने ऑफ़िस बुलवाया। आने पर प्राचार्य ने उसे डाँटते हुए कहा, “दिन-भर मटरगश्ती करते रहते हो। तुमसे एक काम ठीक से नहीं होता। बेहतर होगा कि तुम और कहीं काम ढूँढ़ लो।”
यह सब सुनते ही परीक्षा प्रभारी का मुँह लटक गया। थोड़ी हिम्मत जुटाते हुए उसने कहा, “परीक्षा-कक्षों में प्रश्न-पत्र वितरण का सम्पूर्ण कार्य आपने मिस प्रभा को सौंप रखा है, इसलिए भला मैं दोषी कैसे हो गया, सर? मिस प्रभा क्यों नहीं?”
मिस प्रभा का नाम सुनते ही प्राचार्य झल्ला पड़े, “डोंट टॉक अबाउट मिस प्रभा, डू योर वर्क एण्ड गेट लॉस्ट।”