भविष्य
डॉ. अवनीश सिंह चौहान
उस दिन विश्वविद्यालय के एडमीशन सेल में बड़ी भीड़ थी। नर्सिंग में डिप्लोमा करने के लिए बारहवीं पास कई लड़के और लड़कियाँ अपने अभिभावकों के साथ क़तार लगाए खड़े थे।
कुछ समय बाद एडमीशन प्रक्रिया सम्पन्न हुई। कुछ लड़के और लड़कियाँ खिलखिला रहे थे, तो कुछ दुखी दिख रहे थे। अभिभावकों की भी मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ थीं।
उसी समय नर्स का परिधान पहने दो लड़कियाँ वहाँ से गुज़रीं। अभिभावकों ने जिज्ञासा-वश उन्हें रोक लिया। उन्होंने उनसे पूछा, “क्या आप नर्स हैं?”
उत्तर मिला, “जी।”
‘कहाँ’, ‘कैसे', ‘क्यों’ आदि प्रश्नों के साथ अभिभावकों ने एक प्रश्न और पूछा, “कितनी सैलरी है?”
एक नर्स ने सकुचाते हुए कहा, “आठ हज़ार प्रति माह।”
एक अभिभावक ने बताया कि दिल्ली में इसकी दोगुनी सैलरी मिलती है; तो दूसरे अभिभावक बोले कि इतना भी कम नहीं है, ख़ाली बैठने से तो अच्छा ही है।
यह सब देख-सुन रहे कई लड़के-लड़कियाँ आपस में खुसफुसाने लगे। उन्हें अपना भविष्य दिखाई दे रहा था।