सलीक़ेदार कान

01-11-2021

सलीक़ेदार कान

ज्योत्स्ना मिश्रा 'सना' (अंक: 192, नवम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

कितना बोलती हो
अक़्सर यह सुनती
फिर भी हैं बोलती 
औरतें, क्योंकि
होती है उम्मीद 
सुनेंगे उन्हें वो
सलीक़ेदार कान।
 
झिड़क खाते- खाते
अक़्सर कहने से
हिचकिचाती औरतें
क्योंकि आशंकित 
हो जाती हैं, क्या
सुनेंगे कभी उन्हें वो
सलीक़ेदार कान।
 
फिर एक दिन समेटे
अंदर अपने सब कुछ 
ख़ामोश हो जाती
हैं औरतें, क्योंकि
नहीं मिलते उन्हें 
सुननेवाले वो
सलीक़ेदार कान।
 
और छोड़ जाती हैं
पीछे अपने एक
यक्ष प्रश्न, क्या
कभी मिल पाएँगे
औरत को समझने 
वाले, सुनने वाले वो
सलीक़ेदार कान।

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