नदी के उस पार
हेमंत गोविंद जोगलेकरमराठी कविता: नदीपलीकडे तुझे घर
मूल कवि: हेमंत गोविंद जोगलेकर
अनुवाद: हेमंत गोविंद जोगलेकर
नदी के उस पार तुम्हारा घर
घर की खिड़की की चौखट में
वक़्त बेवक़्त दिनभर
दिखाई देती हो तुम।
तुम्हारी आँखों में
इतनी दूर से दिखाई देता है मुझे
नदी का चढ़ता घटता पानी
नदी की तरफ़ देखे बिना
जैसे ही शाम हो जाती है घनी
होती है अवतीर्ण एक एक चाँदनी
आकाश में चाँद बिना
तुम्हारी घर की खिड़की से तब
बिखरता है पीला-सा प्रकाश
ना जाने कब रात में
आँख लग जाती है मेरी थक कर
—और अचानक टूटती है नींद, सुनकर
माँझी का दर्द भरा सुर
जाती रहती है
पानी में से नैया उस पार झर झर
पानी पर चलते है डाँड सर सर
पानी में घुलते हैं चाँद के टुकड़े
तुम्हारा घर अँधेरे में
अँधेरे में इतनी दूर से दिखाई देती है मुझे
कस कर बंद की हुई खिड़की तुम्हारे घर की
तुम गहरी नींद में
—मेरे घर में।