एक ही कविता
हेमंत गोविंद जोगलेकरमराठी कविता: माझी कविता
मूल कवि: हेमंत गोविंद जोगलेकर
अनुवाद: हेमंत गोविंद जोगलेकर
तुम कहा करती थी, “समझ में आती नहीं तुम्हारी कविता”
पर रूठ जाती थी गर दिखाता नहीं तुम्हें कोई कविता
फिर ज़िद करती थी—अब पढ़ूँगी ही नहीं तुम्हारी कविता
पर दिखाती थी पढ़कर सहेलियों को मेरी ही कविता
विभोर हो उठती थी पढ़ते हुए कोई कविता
व्याकुल हो कर पूछती थी, “क्यूँ लिखी ऐसी कविता?”
बहुत सारी इकट्ठा हुई हैं, जो तुमने पढ़ी नहीं ऐसी कविताएँ
पर जिसमें तुम नहीं हो ऐसी नहीं है एक भी कविता!