खुली किताब
हेमंत गोविंद जोगलेकरमराठी कविता:उघडे पुस्तक
मूल कवि: हेमंत गोविंद जोगलेकर
अनुवाद: हेमंत गोविंद जोगलेकर
मैं देखता रहता हूँ टकटकी लगाए
तुम्हारी तरफ़।
अपने बिस्तर पर पढ़ते हुए लेटी तुम।
बीच में कमरा भरा हुआ सोये हुए मेहमानों से।
छू लेती है तुम्हारे गाल
मेरी नज़र।
तुम चौंक कर देखती हो
मेरी तरफ़।
घबरा कर बुझा देती हो दीया।
अब तुमने ही ओढ़ी है
अँधेरे की एक ही चद्दर
मेरे और अपने ऊपर।
तुम ही बताओ,
अब कैसे हट सकती है
ऊपर नीचे हो रही तुम्हारी छाती पर
लिपटी हुई मेरी
खुली किताब?