मेरे भीतर कौन गाता है? 

15-08-2023

मेरे भीतर कौन गाता है? 

डॉ. नीता चौबीसा (अंक: 235, अगस्त द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)


टूटा देह का इकतारा
फिर ये मेरे भीतर कौन गाता है? 
 
रह गए जो बोल अनकहे
ये कौन सुनता सुनाता है
बन्द है मेरे नयन कोटर
फिर कौन मुझे छू कर जाता है
निकल कर मेरे भीतर से
ये कौन दूर खड़ा
हँसता मुस्कुराता है? 
टूटा देह का इकतारा
फिर ये मेरे भीतर कौन गाता है? 
 
नहीं आती हिचकी
न ही मैं तनिक खिसकी
फिर भी शीतल समीर का झोंका
पोर पोर झँकृत कर जाता है
रन्ध्र रन्ध्र सुवास महकाता है
सुदूर हिमालय पर पारिजात 
कहीं खिलखिलाता है!! 
टूटा देह का इकतारा
फिर ये भीतर कौन गाता है?
 
देखती हूँ इर्द गिर्द
खिल उठे कितने ही कँवल हैं
पद्म पद्म पर सहस्त्रदल
झर झर झर भीतर निर्झर है
तर है कंठ, तृप्त प्यास है
जोगिया तेरा रंग ख़ास है
कभी हरा है, कभी गेरुआ
कहीं दूर नीलाभ सितारा बिन 
नभ ही टिमटिम झिलमिलाता है!! 
बिन सकोरे भीतर मेरे
ये कौन अथक दीया जलाता है? 
टूटा देह का इकतारा
फिर ये मेरे भीतर कौन गाता है? 
 
बिन केसर बिन अक्षत अर्चन
ये कौन मुझे अंगराग लगाता 
कभी उष्ण से तप्त कुंड में
कौन मुझे गोता लगवाता 
बिन नदी कूप ताल सरवर
ये कौन मुझे प्रतिक्षण नहलाता है
टूट देह का इकतारा 
फिर ये मेरे भीतर कौन गाता है? 
 
सो गई मैं बंद हैं चक्षु
सो गया ब्रह्मांड पूरा 
पाँखि, पत्ती, सोये सप्त स्वर
फिर ये मेरे भीतर कौन 
जाग कर अघट टेर लगाता है
अभान में भान का यह
कौन हेतु बन जाता है
पंचभूतों से पृथक फिर भी 
न ही मैं है, न ही तू है, 
शेष पर अशेष पूरित
अस्तित्व की आँच अगणित!! 
ये कौन भीतर लहलहाता है
चेत और अचेत के बीच
सवर्ण कलश छलकाता है
टूटा है देह का इकतारा
फिर ये मेरे भीतर कौन गाता है? 
 
खिले हुए पद्मों के नीचे
जल नहीं, न कीच ताल है
योगाग्नि के हवनकुंड में
बिन अनल ही ताप-ताप है
जोगी के संग, जोगी के रंग
जला तपा कर कनक से
कुंदन रोज़ मुझे क्यों कर जाता है
पद्म पद्म अनुराग सुधा का
अमृत मुझ पर बरसाता है। 
टूटा देह का इकतारा है
फिर ये मेरे भीतर कौन गाता है?

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