मैं कौन था
पवन निषाद
मैं था!
पहाड़, पेड़, आकाश
और खिला हुआ फूल
वो थी!
नदी, पत्ती, वर्षा और सुगंध
मेरा ठहरना स्वाभाविक था
उसका चला जाना
जैसे!
पहाड़ को छोड़कर
नदी मिल जाती है सागर में
पेड़ से पत्ती अलग होकर
चिपक जाती हैं मिट्टी से
आकाश से वर्षा अलग होकर
समा जाती है धरती में
फूल से सुगंध अलग होकर
घुल जाती है हवा में
वैसे!
वो मुझे छोड़कर चली गई
किसी ग़ैर का घर बसाने
नदी का, पत्ती का, वर्षा का, सुगंध का
वापस आना असम्भव था
कुछ सम्भव था
तो उसका वापस आना
वो आई
मैं उसको देखा
पहले से उसकी सुंदरता
कई गुना बढ़ गई थी
मैंने और ध्यान से देखा
तो दिखा?
उसके माथे का सिंदूर
गले का मंगलसूत्र
ये किसी के जीवित होने का प्रमाण था
परन्तु!
इसी वजह से कोई मर गया था
वो मैं था!