एकलव्य

पवन निषाद (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

आज से नहीं 
आदि से देख सकते हैं 
गुरु की संकुचित सोच 
एकलव्य का काटा जाता है अँगूठा 
अर्जुन को श्रेष्ठ बनाने के लिए
 
यह परंपरा 
आज तक क़ायम है
 
विश्वविद्यालय में सबसे उत्कृष्ट पद पर 
कार्यरत द्रोण
आज भी देखता है 
अपना धर्म 
अपना वर्ग 
अपना समुदाय 
अपनी जाति 
वह अपने पद की गरिमा को 
अपमानित करते हुए 
 
काटता है एकलव्य का अँगूठा 
अर्जुन को श्रेष्ठ बनाने के लिए
 
हे आज के एकलव्य 
अँगूठा काटने से पहले 
काटना उस द्रोणाचार्य का गला 
जो तुम्हें आगे बढ़ने से रोके। 

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