मेरे गाँव के बच्चे . . .

15-02-2025

मेरे गाँव के बच्चे . . .

पवन निषाद (अंक: 271, फरवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

मेरा गाँव 
घर-मकान
खेत-खलिहान 
बाग़-बग़ीचे
बड़े-बूढ़े 
सब वैसे के वैसे हैं 
अगर कुछ बदला है 
तो आज के बच्चे 
उनकी सोच वृद्धावस्था की तरह हो गई 
जिसमें रूढ़िवादिता चरम पर हो 
पाँच साल का लड़का 
इतना परिपक्व हो जाता है
वह भूल जाता है अपनी शैशवावस्था 
अगर उससे पूछो की ‘क’ से 
तो वो कबूतर की जगह बतायेगा 
कट्टा अर्थात्‌ बंदूक
दस  साल लड़का
इतना समझदार हो जाता है कि 
भगा ले जा सकता है बग़ल की लड़की
और वहीं पन्द्रह साल का लड़का 
पड़ोसी की जान कभी भी ले सकता है
लड़के की उम्र अठारह बरस होते ही 
बाप भी डरता है इस बात से कि 
मेरा बेटा मुझको घर से ना निकाल दे 
इक्कीस की उम्र में लड़की
कभी भी घोट सकती है 
अपनी ही माँ का गला
पच्चीस के होते होते मेरे गाँव के बच्चे 
पचासी की उम्र में जीते हैं!

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