किसान
अनिरुद्ध सिंह सेंगर
हुज़ूर,
मेहनत हमारी
खेत हमारे
फ़सल हमारी
और,
दाम तुम तय करो
यह तो नाइंसाफ़ी है
अन्नदाता!
अन्नदाता,
अन्न हम पैदा करें
और
अन्नदाता तुम बनो
पीढ़ियों से तुम
हमें अपना नमक खिलाते रहे
हमने नमक हरामी नहीं की
परन्तु,
अब हम नमक आपका नहीं खाते।
अब नमक आप हमारा खाते हो,
और
नमक हराम हमें कहते हो!
माई-बाप,
रहम करो
खेतों को
पानी नहीं
बिजली नहीं
फ़सल नहीं
हमारे पास
सिर्फ़ कर्ज़ हैं
कर्ज़ से लदे हम
अपने बच्चों को
‘क’ से किसान नहीं
‘क’ से कर्ज़ पढ़ाते हैं।
मालिक,
हमारी गायें कटवा दीं
हमारे बैल बिक गये
हमारे पास नहीं बचा गोबर, खाद
हमारे खेत आश्रित हो गये
रासायनिक उर्वरकों के
कृत्रिम साधनों के।
दरबार,
आपके अधम चाकरों ने
अधम कर दी उत्तम खेती
हमारे खेत रहन हो गये
हमारे सपने दफ़न हो गये
हम बचे हैं
जीवित लाशों की तरह
फाँसी पर लटकने के लिए।
हुक्म!
हम पर दया करो
हमारी पुकार सुनो
हमें हमारी गायें लौटा दो
हमें हमारे बैल वापस दे दो
हमें नहीं चाहिए
ट्रेक्टर पर कर्ज़
वोट की इतनी बड़ी क़ीमत।
हम मतदाता हैं
हम अन्नदाता हैं
हमें मजबूर मत करो हँसिया उठाने के लिए।