ख़ामोशियाँ बोलती हैं
डॉ. सरस्वती माथुर1.
शाखों ने बाँधी
पातों की झाँझर तो
हवायें बोलीं।
2.
पाखी गुंजाये
हवाओं में संगीत
बासंती गीत।
3.
ठंडे सवेरे
रातों को बिछा के
रातें थीं सोयीं।
4.
गुलमोहर
तुम्हारी ललाई से
बसंत आया।
5.
सवेरा जागा
सूर्य सा मन मेरा
धूप सा भागा।
6.
राz खोलती
कुछ ख़ामोशियाँ भी
रहें बोलतीं।
7.
सर्दी की भोर
अलाव सूरज पे
धूप तापती।
8.
मीठे संवाद
चिड़ियों के खोये तो
जंगल रोये।
9.
मैल साँझ की
मटमैली करती
देह नभ की।
10.
धूप किरणें
घास पर बुनती
हरी सी दरी।
11.
सूखी है डाल
तितली-भँवरों का
बुरा है हाल।
12.
नभ के माथे
सूरज का झूमर
रोशन धूप।