कल ज़मीं पर आज-से दंगल नहीं थे

15-08-2023

कल ज़मीं पर आज-से दंगल नहीं थे

डॉ. राकेश जोशी (अंक: 235, अगस्त द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन
2122    2122    2122
  
कल ज़मीं पर आज-से दंगल नहीं थे 
आज जो भी हैं सफ़र में, कल नहीं थे
 
देखकर ये ख़ुश हुआ मन, क्यारियों में  
ढेर-सारी सब्ज़ियाँ थीं, फल नहीं थे
 
आज बस्ती में कहीं पानी नहीं है 
कल तो पानी था मगर कल नल नहीं थे
 
थी सड़क चौड़ी बहुत, पर रास्ते में 
वो पुराने पेड़, वो जंगल नहीं थे
 
फिर मरे कुछ लोग सर्दी में वहाँ कल 
क्या तुम्हारे देश में कंबल नहीं थे
 
जिस क़दर लोगों की थीं मजबूरियाँ कुछ 
उस क़दर आकाश पर बादल नहीं थे
 
पाँव में छाले सभी के थे हज़ारों 
पर किसी के ख़्वाब तो घायल नहीं थे
 
आज रौनक़ आ गई खेतों में फिर से 
खेत तो कल भी थे लेकिन हल नहीं थे
 
ख़ूब-सारा वक़्त था औरों की ख़ातिर 
बस, हमारे वास्ते कुछ पल नहीं थे

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