झूठ बोलूँ तो कौवा काटे 

01-03-2023

झूठ बोलूँ तो कौवा काटे 

ईश कुमार गंगानिया (अंक: 224, मार्च प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

बहुत सारे लोग 
यक़ीन से नहीं कह सकते कि 
वे स्वयं को कितना जानते हैं
लेकिन दूसरों को जताने के लिए 
माथे पर तख़्ती लिए घूमते हैं 
 
वो चाहते हैं कि 
दूसरे उन्हें उनके नाम से नहीं
उनके उपनाम से पहचानें
जो तख़्ती पर लिखा है
उसे ही उनकी हक़ीक़त मानें 
 
यह कमाई उन्होंने
पुरखों से वसीयत में पाई है
नहीं जानना चाहते वे 
कि उनके पुरखों ने यह दौलत
कैसी-कैसी ख़ुराफ़ातों से कमाई है 
 
उनकी ज़िद है कि हम
अपने पुरखों की रीत निभाएँगे
जो लेबल हमारे पुरखों ने 
दूसरों के साथ चस्‍पा किया है
उसमें कोई बदलाव नहीं लाएँगे 
 
उन्हें दूसरों की पीठ पर
सवारी की लत लग गई है
वे इसे कुल की पहचान कहते हैं
एक वो हैं जो दिन-रात 
इनके जल्लादी चाबुक सहते हैं 
 
इन दोनों के बीच एक 
प्रतिरोध सदियों से जारी है 
पहले उनका पलड़ा भारी था
अब पासा उल्‍टा पड़ा है, इसलिए
आज दूसरे पक्ष की बड़ी हुंकारी है 
 
यह सिर्फ़ व्यक्ति, जाति
या धर्म मात्र का अखाड़ा नहीं है
झूठ बोलूँ तो कौवा काटे 
यह धर्म और सत्ता की कारगुज़ारी है
जनता बस इसी गठजोड़ की मारी है। 

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