बोलती बंद क्यूँ है
ईश कुमार गंगानियाहम शहीदों को
श्रद्धांजलि अर्पित का
कोई मौक़ा नहीं छोड़ते
मगर एक सवाल है
शौर्य का गुणगान मात्र
हमारे फ़र्ज़ की इतिश्री क्यूँ है?
अगर नहीं तो
कोई कवि, राजनेता हो या
कोई भी शब्दों का जादूगर
अभिनय की प्रतियोगिता में
हर कोई स्वर्ण पदक
पा लेने की अफ़रा-तफ़री में क्यूँ है?
हमें अपने जाँबाज़ों के
जीवन से कुछ सीखने
उन जैसे अनुशासित व
क़ुर्बानी जज़्बे को
जीवन में न अपनाने की
तिकड़म बाज़ी की ज़रूरत क्यूँ है?
अगर नहीं तो
झूठ-मक्कारी के
इस्तिक़बाल बुलंद क्यूँ है
देश की अस्मिता के
रक्षक सिपहसालारों के
शौर्य की बोलती बंद क्यूँ है?