जगमोहन का अंतिम श्वास
सौरभ कुमार
जामताड़ा की यह कथा जगमोहन मंडल (काल्पनिक नाम) की है। कुछ चाहतें करवटें बदलती हैं, कुछ चाहतें खर्राटे लेती हैं और कुछ चाहतें लेती हैं अपनी अंतिम श्वास। जगमोहन, एक आशिक़ जिसे अपनी जान गँवानी पड़ी!
इंटरमीडिएट की परीक्षा देकर हम सभी मित्र जीवन की एक बड़ी ज़िम्मेवारी से मुक्त खुले आसमाँ में तब विचरण कर रहे थे। संथाल परगना क्षेत्र के एक विख्यात ज़िला जामताड़ा की एक वारदात अनहोनी बनकर तन में आज भी मेरे ठिठुरन पैदा कर उठती है। ‘सेल्फ़ी बॉय दा जगमोहन’ चरित्र से बड़ा ही रोमांचक, टीम वर्क, विनम्रता, निष्पक्षता, खुलापन और कर्तव्यनिष्ठता स्वभाव का मित्र रहा। मित्र जगमोहन रोमांटिक भाव से निष्पक्ष सभी युवतियों को निरंतर घूरे जा रहा था, जैसे कि उन्हें किसीकी परवाह ही नहीं, किसीका विषाद नहीं। 14 सेकंड तक युवतियों को घूरना भी भारतीय दंड संहिता की धारा 354सी के तहत सज़ा का विधान है। एकाएक मेरे सारे मित्र जगमोहन और मित्र विपुल के इस हास्यपद कृत्य की फिरकी लेते हुए तस्वीरों से रोचक पलों को और प्रफुल्लित करने लगे। मैं बड़ा ही उत्साहित था कि कई दिनों की स्थिरता के बाद मित्रों के मोबाइल पर से एकाध तस्वीर निकाल फ़ेसबुक पर अपनी धाक जमा सकूँ। जोकि धाक, हमेशा की भाँति, जगमोहन की ही रहती।
आज आसमान अपनी नीले कपड़े ओढ़े हुए सूर्य के तेज़ से पृथ्वी को चूस रहा है, मानो अपनी किसी दुश्मन से आदर्श दुश्मनी निभा रहा हो। इन्द्र महाराज की प्रसन्नता के लिए नाला प्रखंड परिसर में यज्ञ का अनुष्ठान शुरू हो चुका है। यज्ञ पूजन का आज पहला दिन है! हम मित्रगण मिलकर सवेरे-सवेरे पूजन के पूर्व होने वाली कलश यात्रा देखने के लिए उत्साहित हैं और प्रखंड परिसर के समीप कुरुली नदी की ओर क़दम बढ़ा चुके हैं। आपसी संपर्क से जुड़कर सभी मित्रगण का एक निर्णायक स्थान पर पहुँच जाना—मेरा मन अब भी उत्साह से भावविभोर हो उठता है। ग्रुप के कई मित्रों में से जगमोहन भी जीवन पर्यंत मेरा ख़ास मित्र बना रहा बाक़ी ग्रुप में हमेशा की भाँति हीरो कंपनी के न्यू बाइक के साथ रोबिन पाल, सभ्यसाची, मंटू, जयंत, अजित, विपुल और मैं। अस्त-व्यस्त दुनियादारी ने सभी मित्रों का चरित्र बदल दिया है, पर जब संग होते हैं तो आज भी चार चाँद लगते देर नहीं लगती।
लोग चरित्र से आपस में अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं। जगमोहन स्वभाव से लोगों में जल्द घुल-मिल जाता। बातों-बातों में अपने आपको दूसरों में घुलकर मित्रता की साख जल्द ही जमा पाने की क्षमता सम्पन्न मित्र जगमोहन मंडल था। उस दिन कलश यात्रा के सम्पन्न होने के उपरांत यज्ञ स्थल की चारों ओर परिक्रमा करना, आज भी मेरे आँखों को जलमग्न करता है, क्योंकि ठीक अगले ही दिन यह दुर्भाग्यपूर्ण समाचार सुनकर मेरे पूरे बदन में सीहरन उमड़ पड़ी।
“बदल गया क्यूँ मिज़ाज उनका कुछ ही मुद्दत में,
वो तो कहता था बदलते लोग उसे अच्छे नहीं लगते।”
प्रेम की बात आ जाये तो अक्सर लोग अपनी दिशा बदल लेते हैं। जिसे दोस्ती-यारी से फ़ुर्सत नहीं, फिर भी उनसे हज़ारों की भीड़ में भी, अपनी मेहबूब या मेहबूबा को भुलाया नहीं जाता है! शायद साया बनकर मन में मँडराता रहता है। ज़रा ध्यान दिए होंगे तो जाना होगा कि उच्चतम गुणवत्ता से निम्नतम, प्रत्येक आशिक़ भटकते हुए, आपको भावनाओं के इस अखाड़े में जूझते हुए मिल जाएँगे।
जगमोहन मंडल, एक सच्चा आशिक़, अब हमारे बीच में नहीं था।
“देख रोमांच जिनका मैं अक्सर हौसला देता था,
वक़्त जब मेरा मुझसे गवारा नहीं होता था।”
प्रेम के साये में फँसे मेरे मित्र को इस क़द्र दर्द का एहसास हुआ होगा, किसी से शिकायत न सही ख़ुद से तो रूबरू हुआ होगा! एक प्रश्नवाचक चिह्न? जगमोहन मंडल, हज़ार विपत्तियाँ स्वयं निपटाने की क्षमता रखने वाला मित्र—आख़िरकार प्यार में डूब गया। उनकी मेहबूबा के विवाह के महज़ कुछ दिन पहले यह दुर्घटना घटी। इस दुर्घटना के घटने का ठोस कारण किसीके पास नहीं। नदी किनारे मेरे मित्र का शव पूरी रात लावारिस की भाँति पड़ा हुआ सुबह किसी भले मानुष ने देखा और संग में पड़ी हुई काँच की एक ख़ाली शीशी। एक हँसमुख लड़का जिसने अपनी मेहबूबा के साथ अपनी ज़िन्दगी बसाने का ख़्वाब देखा होगा, बेचारा स्वयं की ज़िन्दगी कितनी ही जी पाया होगा?
इंसान मानसिक रूप से स्वस्थ हो तो वो हर हालात से लड़ सकता है, लेकिन अगर मेंटल हेल्थ की समस्या हो तो उसे हालात ही प्रॉब्लम लगते हैं। बड़े-बड़े ख़्वाब देखने वालों के लिए काली स्याही में मोटे अक्षरों में लिखा होना चाहिये—
“प्रेम, ख़्वाब देखने वालों के लिए जानलेवा है। इसे अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी और अनुभवी व्यक्ति की देख रेख में ही करें!”
सुनने में ख़ूब लगती मोहब्बत
सुनने में ख़ूब लगती मोहब्बत
तकलीफ़ों से भरी, जहाँ जन्नत
प्यार मोहब्बत सब बकवास है
न पड़ना मेरे प्यारे भाई,
तुमसे माता-पिता की आस है।
उगते हुए सूरज तुम . . .
उनकी हर ख़ुशी की बौछार तुम
अपने माता-पिता का श्वास तुम
क़ुदरती नियम को तोड़
किया फिर ऐसा तुमने
शाम होते इक पहर पहले,
अस्त किया सूरज तुमने।
माता-पिता कि ख़ुशी
और स्वयं को ज़माने से
किनारा कर, सिधार गये।
जज़्बातों में खिल गये . . .
सम्हाल न सके, हमें छोड़ गये
क़ुदरती दुनिया को मोहब्बत से
मोहब्बत का अमृत जल दे गये।
यादों में पल-पल आते हो
ख़्वाबों में मोहब्बत बरसाते हो,
कभी मोहब्बत पर हँसते हो,
कभी मोहब्बत के लिये रोते हो।
ज़िन्दगी में सभी एक सुकून चाहते हैं
पर मोहब्बत करने वाले हज़ार होते हैं
हे मित्र! यहाँ शिवरात्रि में अर्चन शिव की,
पर भक्ति और स्नेह कन्हैया के होते है।