अम्मा स्कूल खुलने वाली है
सौरभ कुमारदिनभर सूर्य अपनी रोद्ररूप में विशाल धरती की चुस्की ले रहा था। आषाढ़ी गोधूलि बेला, झमाझम बारिश घरवाली उपला झूड़ी में चुन रही है, पुदीना कपड़ा इकठ्ठा करने लगी। कोटा किसान लम्बी साँस भरते हुऐ मानो अबकी दफ़ा चैन की साँसे भरा हो, बादलों के गड़गड़ाहट सुन रहा था कि पुदीना चाय लेकर आती दिखाई पड़ी। कोटा हिचकिचाहट भरे स्वर से बोला, "पुदीना जा देखके बता घर में बेसन पड़ा है; आजकल भात कहाँ पेटभर ठूसा जाता है?"
"अच्छा बाबूजी।"
"चाय पी ले! फिर मुझे बता, अबकी मौसम कुछ गरमा-गर्म, तुझे बड़ी अच्छी लगेगी, हम साथ पकौड़ी-मुड़ी दावत करेंगे, चल अब देर ना कर!"
"बाबूजी मुझे एक जोड़ी जूती दिला दो। मास्टरनी वाट्सअप करी है, अबकी स्कूल में कई सारे पाबन्दी रहेंगी और सभी को स्कूल ड्रेस, मास्क और जूता के बिना क्लास रूम में घुसने ना देंगी।"
"ठीक कहा मास्टरनी जी ने; अब कहाँ वह सुन्दर प्राकृतिक वातावरण, कहाँ स्वच्छ हवा जल कि पत्थर निगल ले तो हज़मा जाए। मैं लाडली बिटिया के लिए बड़ी-बड़ी जूती खरीद लाऊँगा।"
"नहीं बाबूजी! मुझे चार नम्बर ही आता है।"
"अच्छा रेहने दे मुझे सब मालूम है। अब तू जा, ज्यादा सिक्छा मत दे। चाय पी फिर मुझे खबर कर!"
लक्छमी सब कुछ सुन रही थी पर कुछ बोल नहीं पाई।
घर पर राशन-पानी आने भाव सरकारी दुकान से तो मिल जाता पर पेट पालने में दाना-पानी बचे तो ना! भोग विलास में पैसा कहाँ मिले? गाँव में अगर किसी शादी-विहा में दावत मिल जाए, तो त्यौहार भी फीका पड़ने लगे पर कहाँ आजकल कोई दावत देता है! बस चले तो सब आपन घर द्वार में ही पड़े मौज उड़ाए और डकार भी ना ले।
पुदीना चाय पीती हुई अम्मा के पास हुई और एक दूसरे को घूरे जा रही . . .
"अम्मा स्कूल खुलने वाली है बाबूजी से बाज़ार में इक्कीस का कर्रेंट अफेयर्स मँगा देना।"
"घर का काम में मन तो लगती नहीं महारानी को किताब चाहिए . . . और क्या! मंगा ले अपने बाबूजी से जो चाहिए। मुझे क्या बोलती है जूती, पेंसिल, रब्बर . . ."
पुदीना की चोरी पकड़ी गयी मुखरमंत्री के नाम और उसको कर्रेंट अफेयर्स में चाहिए ही क्या बाकी परधनमंत्री के नाम गली-मोहल्ले का बच्चा-बच्चा को याद है। उसे मालूम था पाँच साल के चुनाव में मुखरमंत्री बदल जाता है! कारण स्कूल में यह दो सवालों पर ज़्यादा तवज्जोह देना और भूल होने पर दण्ड मिलना।
उधर कोटा को भनक लग गया कि पुदीना बिना अम्मी से पूछे कुछ सूझती नहीं और घर के हालात उसे पीछे धकेल दिया।
इसी बात पर लक्छमी और कोटा में कभी-कभार हाथाफाई हुआ करता है।
घर से निकलते ही उसने मंजूनाथ से मिलने चला गया। हाल ही में उन्होंने कोरोना नेगेटिव हो आया था पर घर में उसका बेटी जमहाई अकेला छोड़ गया। मंजूनाथ कुछ दिन शहर में रह आया था जहाँ उन्होंने अपनापन के घोर विकृत रूप, स्वार्थी मानुष को देख आया। उसके नज़रों में शहर केवल भोग-विलास की आवश्यकता को पूरा कर सकता है पर दैनिक जीवनयापन अपने गाँव से बेहतर जगह संसार में कहाँ?
"सही कहा भैया! यहीं महामारी देख लो! हम नमक पानी जुगाड़ कर खा लेंगे मगर शहर में तो आर्मी पुलिस जन-जन को अपने ही घर पर बन्दी बनाये फिर रहा है, बेचारे खाये-पिये क्या? और साँस क्या ले?"
"नहीं रे कोटवा, नमक पानी जुगाड़, वहाँ का सरकार कराती है। हाँ, तकलीफ में है!"
"तकलीफ नहीं विपत्ति बोलो भैया? भगवान जाने बाल-बच्चे चहारदीवार में कैसे बन्द पड़े होंगे!"
मंजूनाथ के जीवनयापन में आय का स्रोत केवल एक जर्सी गाय है जो रोज़ कोटा दूध दुहाई करता है और बदले में आधा सेर दूध अपने घर ले जाता है। कोटवा मंजूनाथ की खेतीबाड़ी भी सम्हाल लेता है जिससे दोनों परिवार का भरण-पोषण किसी तरह हो पाता है।
शाम हो चुकी थी बारिश की बूँद एक-एक धरती को चूम रही थी, पुदीना सांझ दे रही थी कोटा दूध लेकर घर आता है . . .
लक्छमी की आवाज़ सुनाई पड़ती है . . .
"हाँ लो दूध गर्म कर लो और मुझे परेशान मत करो," तभी लक्छमी थाली भर मुड़ी और पकौड़ी लाई।
"लो अब पेटभर ठूसो . . . "
कोटा को हँसी आती है पर पुदीना खिलाखिलाकर हँस पड़ती है। एक साथ तीनों पकौड़ी मुड़ी की दावत का मज़ा लेते हैं।
तभी डिजी साथ वाट्सअप ग्रुप में मैसेज आता है कि चाइनीज़ वायरस के भयंकर संक्रमण देश भर में बढ़ रहा है इस कारण स्कूल फिर अनिश्चितका लिए बन्द रहेगा।
पुदीना का चेहरा छुईमुई पौधे की भाँति मानो मुरझा गया। जितना ख़ुशी उसे जूती पाने की आस थी, उसे पहन कर पूरे स्कूल में घूमने की थी, खेलने की थी, सभी एक सेकंड में उससे छीन ली गई।