इतरा रही हवा है किस बात का नशा है

15-07-2023

इतरा रही हवा है किस बात का नशा है

रवींद्र चसवाल ‘रफ़ीक़’ (अंक: 233, जुलाई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

इतरा रही हवा है किस बात का नशा है
हर साँस अब लड़ेगा सरकश हुआ दिया है
 
साक़ी शराब पी कर शायद क़रार आये
उसका शबाब मुझको कब से परख रहा है
 
कैसे सँभल सँभल कर है ज़िन्दगी गुज़ारी
ये ज़िन्दगी नहीं है बस मौत की सदा है
 
हर शब सता रहे हो दिल भी दुखा रहे हो
इतना मुझे बता दो मेरी भी कुछ ख़ता है
 
दोनों हैं एक जैसे हो इश्क़ या इबादत
जो यार हम नफ़स है वो यार ही ख़ुदा है
 
तुम जो सुना रहे हो नाकामियों के क़िस्से
होगा नया सवेरा कल रात ने कहा है
 
जिसको रफ़ीक़ चाहे उसको नसीब कर लो
गर वो नहीं मिला तो जीवन कड़ी सज़ा है

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