इक साँस जी लिया है हर ग़म भुला दिया है
रवींद्र चसवाल ‘रफ़ीक़’
इक साँस जी लिया है हर ग़म भुला दिया है
तेरा साथ इक दुआ है ये जहान जी लिया है
कश्ती भंवर में डूबे या बेड़ा पार होवे
सब झूठ नाख़ुदाई बस तेरा आसरा है
यादों के क़ाफ़िले तो कब के बिछड़ गये हैं
है इक खुला दरीचा जो मुझ में झाँकता है
जी जी के मर रहे हैं मर मर के जी रहे हैं
अब ज़िन्दगी कहाँ है ये उसका मरसिया है
मैखाना ख़ाली ख़ाली साकी भी है नदारद
तेरा नाम ले के पी लूँ तेरा नाम इक नशा है
अब तुझ से क्या बताऐं बरसों के रतजगों को
ख़ुद लोरियाँ सुना कर हमने सुला दिया है
तुम ए रफ़ीक़ दोनों इक दूसरे के दिल हो
तू उसका दिलरुबा है वो तेरा दिलरुबा है