इतनी रेखाओं के बीच में तो तरलता ही समा सकती है
डॉ. नेत्रपाल मलिक
प्रिये
पढ़ा तो होगा तुमने
वाल्मीकि के ऋषि बनने का दर्शन
‘कर्मफल परिवार नहीं व्यक्ति स्वयं भोगता है’
पढ़ी तो होगी तुमने
नारी ताड़न की अधिकारी
कहती हुई तुलसीदास की चौपाई
तुम छोड़ देती हो पीछे
नारद के दर्शन को
और बढ़ जाती हो उस चौपाई से आगे
परिवार के लिये सुन्दरकाण्ड का पाठ करते हुए
प्रिये
तुमने स्वर्णमृग के लिए
लक्ष्मण रेखा नहीं लाँघी,
लाँघी तो तुमने कभी
पिता रेखा, भाई रेखा
और पति रेखा भी नहीं
इतनी रेखाओं के बीच में तो
तरलता ही समा सकती है
भस्म कर दिया है तुमने स्वयं के सोने को भी
उसी स्वर्णभस्म के मेरुदंड पर टिका है
परिवार का मस्तक
देखता हूँ तुम्हारा कुन्दन हो जाना
हर अग्निपरीक्षा के बाद
स्वयं अग्निपरीक्षा से बचते हुए।