हे शिव, तुम ही कहो
डॉ. रामवृक्ष सिंहमैं मसान में बैठा निज शव साध रहा हूँ
बिखरी साँसों से जीवन को बाँध रहा हूँ
हे शिव, तुम ही कहो कि आगे क्या करना है
उजियारे को तिमिर से अब कितना डरना है
एक बिन्दु है मृत्यु, ज़िन्दगी किन्तु चिरंतन
निज शव पर आसीन यही करता मैं चिंतन
नहीं मरूँगा अभी, सुनो शिव, ज़िद है मेरी
बजा रहा हूँ मैं जिजीविषा की रणभेरी॥