आओ, पर्यावरण बचाएँ
डॉ. रामवृक्ष सिंहसूरज ने जब आँख दिखाई।
लगी झुलसने धरती माई॥
तपन बढ़ी है दसों दिशाएँ
आग उगलने लगीं हवाएँ।
जीव-जन्तु सब आकुल-व्याकुल
यहाँ-वहाँ दे रहे दुहाई॥
नहीं वृक्ष, तालाब न पोखर।
बाग़ काटकर बनवाए घर।
सोचा नहीं एक क्षण हमने
अब चेते, जब जान पे आई॥
हरा-भरा पर्यावरण उजाड़ा।
बारिश रही, न पड़ता जाड़ा।
लुप्त हुईं सुन्दर षड्-ऋतुएँ
मानव की है यही कमाई॥
सोच रहे हैं सब अपने मन।
क्या अबकी बरसेगा सावन।
क्या इस बार घिरेंगे बादल
झिरेगी क्या अबकी पुरवाई॥
आओ सब पर्यावरण बचाएँ।
नहीं ऊर्जा व्यर्थ गँवाएँ।
पानी नहीं बहाएँ नाहक़
प्रकृति से फिर करें मिताई॥
जल-थल से अनुराग बढ़ाएँ।
यहाँ-वहाँ सब पेड़ लगाएँ।
नैसर्गिक जीवन अपनाएँ।
राह यही दे रही सुझाई॥
1 टिप्पणियाँ
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9 Sep, 2021 04:01 PM
रमनवृक्ष जी की पर्यावरण बचाओ पर लिखी कविता मनभावन है हार्दिक बधाई।