लम्बी कविता हाहाकार के कुछ अंश प्रसंगः कश्मीर
बृजमोहन गौड़नाखून विषैले
बढ़े हुए नाखून देख चिंतातुर हूँ मैं
सामाजिक अव्यवस्था से
मुँह चिढ़ाते वे भी चिंतातुर हैं
अराजकतारूपी मैल अपने समा
अति विकराल और घिघौने बन
इठलाने को।
बढ़े हुए नाखून बताते सिर से
ऊपर होना पानी का
और आगे सहने से बेहतर है मैं
ले "नेलकटर" जुट जाऊँ
उस विकृति में नवीन
परिवर्तन लाने को।
बढ़े हुए नाखून ही वो सच है
पुनरावृत्ति करते हैं जो अतीत की
"यदा-यदा हि धर्मस्ये" के सूत्रवाक्य का
करते अर्थ साकार
तभी जन्मता "नेलकटर" एक बन अवतार
मचल उठती हैं फिर सदियाँ, एक अच्छा
विषयान्तर पाने को।
बढ़े हुए नाखून विषैले खुरच रहे हैं
सुन्दर चेहरे सा देश मेरा
मैल जमी है जिनमें भीषण एक विषैले "वाद" की
हे सृजनशक्ति!
बनो तुम नेलकटर, उज्ज्वल
भविष्य बनाने को।
बढ़े हुए नाखून देख चिंतातुर हैं
सब......!
हाहाकार (प्रसंगः कश्मीर)
स्वर्ग धरा पर बसता था जहाँ
हर आँगन थी केसर क्यार,
लगा ग्रहण आतंकी अब तो
चहुं ओर है हाहाकार।
बारूदी अब गंध वहाँ की
संगीनों के साये हैं,
सहमा-सहमा सा बचपन है
चेहरे हैं मुरझाए से,
खो गई बच्चों की किलकार
चहुं ओर है हाहाकार।
झड़े चिनार के सारे पत्ते
अगनित बम धमाकों से,
नहीं नजर आते हैं पक्षी
अब पेड़ों की शाखों पे,
ठूंठ रह गए पेड़ चिनार
चहुं ओर है हाहाकार।
गोली का ईमान न कोई
नहीं देखती मजहब को,
जो इनको है दाग रहा वो
नहीं जानता मजहब को,
अनजाने कर रहे हैं वार
चहुं ओर है हाहाकार।
तिरछी नज़रों से देखा है इन ने
हर मन्दिर की आरत को,
सदा छला है सदा छलेंगे
भोले भाले भारत को,
छीना भारत माँ का शृंगार
चहुं ओर है हाहाकार।
बेकसूर मारे जाते हैं
इनकी निर्दयी गोली से,
खो देती है लाज माँ बहनें
उठा ली जातीं डोली से,
आँखों से बहती है धार
चहुं ओर है हाहाकार।