हड़कम्प

15-07-2024

हड़कम्प

महेश शर्मा  (अंक: 257, जुलाई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

“माँ ये सो गये हैं, मुझे भी नींद आ रही है, आप ध्यान रखना।” स्वाति ने अपने नन्हे-मुन्ने दो माह के सुकुमार को देखा जिसकी मासूम सी स्वप्निल आँखें दूध पीते-पीते मुँदती जा रहीं थीं और उसे सोता देख स्वाति के मन में ये लालच जागा कि जब तक बेटा सोता है मैं भी सो लूँ। 

पिछ्ले दो माह से पूरे परिवार की दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो रही थी। नवजात शीशु आमतौर पर दिन में सोते हैं और रात भर ख़ुद तो जागते ही हैं उनके कारण बच्चे की माँ और परिवार के अन्य लोग भी सो नहीं पाते। दिन भर सो कर शाम को जागा हुआ बच्चा वापस भोर होते-होते ही सोता है और तभी पूरे परिवार के सदस्य चैन की नींद सो पाते हैं। 

आशीष बाबू उनकी पत्नी मधु और बेटी स्वाति जिसे दो माह पहले ही बेटा हुआ था, इन तीनों के अलावा स्वाति का छोटा भाई मयंक और छोटी बहन अमिता सारे पाँचों इस क़वायद में शामिल थे जो एक नन्हा-सा दो माह का मासूम बच्चा इनसे करवा रहा था। और ताज्जुब यह कि यह सारी क़वायद सारी तकलीफ़ें सारी असुविधा परेशानी ज़रूर पैदा करते थे लेकिन यह मज़ेदार थी, मनमोहक थी, प्यारी थी। क्योंकि यह नन्हा फ़रिश्ता परिवार का पहला नाती था पहला भाँजा था घर में ममता का सागर उफान ले रहा था। पूरे परिवार में अनर्वचनीय ख़ुशी का सैलाब बह रहा था, किन्तु यह भी सत्य है कि यदि आप मशीन नहीं ज़िन्दा मनुष्य हैं तो आपको समय पर खाना-पीना, सोना-बैठना आराम करना भी आवश्यक होता है। और जब लगातार लम्बे समय तक आप ये सब नहीं कर पाते तो चिढ़ना झुँझ्लाना भी आपकी दिनचर्या में शामिल हो जाता है। 

स्वाति सो चुकी थी। मधु भी जल्दी-जल्दी सारे काम निपटा रही थी ताकि नन्हा फरीश्ता जिसे हम अब मोनु-कहेंगे क्यूँकि घर के सब लोग उसे इसी नाम से पुकारते हैं, जागे उसके पहले सारे काम निपट जायें। 

पूरे घर में बड़ा शांत वातावरण था। स्वाति के दोनों भाई बहन खाना खा चुके थे और अपने कमरों में जाके अपनी पढ़ाई में लग चुके थे। मधु ने आज खाने में दाल रोटी सब्ज़ी के अलावा पकौड़े भी बनाये थे और स्वाति ने ना-ना करते हुए भी तीन-चार पकौड़े खा लिये थे। बहुत दिनों के बाद कुछ चरपरा नमकीन खाना मिला था। इच्छा तो थी कि भरपेट पकौड़े खा लिये जायें लेकिन डर के मारे नहीं खाये। 

शाम के सात बज रहे थे। आशीष बाबू रात्रि 9 बजे के पहले नहीं आ पाते थे। नगर के व्यस्ततम चौराहे पर उनका मेडिकल स्टोर था। जहाँ संध्या सात बजे के बाद ग्राहकी बहुत बढ़ जाती थी। और आशीष बाबू को दुकान समेट कर घर आते-आते 9.30 हो ही जाते थे। परिवार का खाना निपटने में 10-10.30 होना सामान्य बात थी और बस तब तक ही नन्हा राजकुमार अपनी नींद पूरी कर अलसाता हुआ, आँखें मटकाता हुआ अपने जागने का एलान कर देता था। अब दिन भर के अपने-अपने काम से थके-हारे घर के सारे सदस्य कुछ देर तो बच्चे के साथ चुहलबाज़ी करते हँसते-बतियाते और फिर सोने की सोचने लगते लेकिन स्वाति और मधु जानती थी कि उनके सोने का समय अभी नहीं आया है क्यूँकि राजकुमार अभी-अभी जागा है, और देर रात तक उसके सोने की कोई सम्भावना नहीं है। और इसी कारण उन दोनों का सोने का कुछ भी निश्चित नहीं है। 

तो अभी तो राजकुमार भी सोया था स्वाति भी चैन से सोई थी। मधु किचन में बाई के साथ त्वरित गति से काम निपटा रही थी। किचन से आती बर्तनों की आवाज़ों के बीच अचानक एक धीमा स्वर शुरू हुआ निश्चित रूप से यह नन्हे राजकुमार के कुनमुनाने की आवाज़ थी जो दो चार मिनिट तक तो ना तो स्वाति के सुषुप्त कानों में पहुँची, ना ही किचन में काम करती मधु तक और ना ही ऊपर अपने रूम में पढ़ाई करते अमिता और मयंक तक। 

लेकिन दो-चार मिनिट बाद ही बच्चे का अलसाते हुए कुनमुनाता स्वर धीरे-धीरे बढ़ने लगा उसने अपने नन्हे-नन्हे हाथ-पैर भी चलाना शुरू कर दिया था। गहरी नींद में सोई स्वाति फिर भी सो रही थी लेकिन आवाज़ मधु के कानों तक पहुँची। “अरे बेटा स्वाति देख तो भय्यु जाग गया है,” माँ की आवाज़ से जागी स्वाति ने अधखुली आँखों से अपने नन्हे राजकुमार को देखा और उसे अपने नज़दीक खींच कर थपथपाया और दूध पिलाना शुरू किया ताकि वो वापस सो जाये। लेकिन राजकुमार ने क्षणांश दूध पीने का उपक्रम किया और फिर दूर होते हुए अपने रोने का स्वर थोड़ा तेज़ कर दिया। 

“मम्मी प्लीज़ इसे सम्हालो कुछ देर मुझे बहुत नींद आ रही है।” स्वाति की आवाज़ सुन कर मधु ने किचन का काम अधूरा छोड़ते हुए रूम में आकर बच्चे को अपनी गोद में लिया और थपथपाने लगी। लेकिन आज नानी के हाथों के स्पर्श से कुछ कुछ वाक़िफ़ राजकुमार ने नानी की थपथपाहट को अस्वीकार कर दिया और अपने रोने का स्वर कुछ और तेज़ कर दिया। “स्वाति बेटी इसको भूख लगी होगी उठो इसे दूध पिलाओ दूध पीते पीते सो जायेगा।” 

“मम्मी ये नहीं पी रहा, मैंने अभी ट्राय किया था, आप इसे बहलाओ सो जायेगा।” 

“बेटा तुम समझती नहीं, तुम इसे दूध पिलाना शुरू तो करो। मिनिटों में वापस सो जायेगा।” 

दोनों माँ बेटी की बातों की कोई परवाह ना करते हुए मोनु का रोना जारी था बल्कि अब रोने की आवाज़ कुछ तेज़ हो गई थी। अंततः स्वाति को उठना पड़ा; क्षणिक झुँझलाहट से स्वाति ने अपने राजकुमार को देखा और वो निहाल हो गई। उसे उठा कर दूध पिलाने लगी बच्चा कुछ पलों के लिये चुप हुआ दूध पीने लगा मधु आश्वस्त हुई लेकिन ये आश्वस्ती कुछ ही क्षणों की थी; बच्चा वापस रोने लगा था। किचन में काम करती कमला बाई भी वहाँ आ चुकी थी। अब माँ बेटी के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभरने लगी। 

“का हओ बिटिया? बचुआ लगत रोई रहीन। पेट तो नाहि दुखत है याको?” 

“पता नहीं कमला बाई क्यों रो रहा है इतना?” 

“आज तुमन का खाओ बिटिया?” 

“क्या मतलब कमला बाई?” 

“अरी बिटिया खाने में कुछ मिर्च मसाला लिया था क्या?” 

“नहीं तो।” स्वाति बोली लेकिन उसे पकौड़े याद आ गये। क्या दो चार पकौड़े खाने से कुछ फ़र्क़ पड़ता है? उसने सोचा उसी क्षण माँ बेटी की नज़रें आपस में मिलीं, कुछ असमंजस से दोनों ने एक दूसरे को देखा फिर मधु ने दोहराया, “नहीं कमला बाई ऐसा तो कुछ नहीं खाया।” 

“फिर भी बिटिया हमैं तो लगत है बचुआ का पेट दुखत रहीन। हमरी मानो तो बचुआ के पेट पर डुठीन पर हींग का पानी फेर दो सारा अफारा उतर जईन।” 

“मम्मी ले आओ ना हींग,” स्वाति ने तत्परता से कहा। दोनों माँ बेटी समझ रहीं थीं मसालेदार पकौड़े खाने से ही बच्चे का पेट दुख रहा होगा। यद्यपि मधु कमला बाई के निष्कर्ष से सहमत नहीं थी कि स्वाति के दो-चार पकौड़े खा लेने से बच्चे को तकलीफ़ होगी। लेकिन एक तो अनुभव की कमी दूसरे मनुष्य स्वभाव कि मुसीबत होने पर तो हरेक सलाह को हम मानने लगते हैं। 

मधु दौड़ पड़ी किचन की और हींग लाने तत्काल हींग पानी में घीस कर बच्चे के पेट पर डुंठी पर लेप लगा दिया। लेप लगाते ही बच्चा चुप हुआ तो मधु और स्वाति दोनों की नज़रें कमला बाई के चेहरे की तरफ़ घूमीं। दोनों की नज़रों में धन्यवाद का भाव था तो कमला बाई के दिमाग़ में ख़ुद के छह बच्चे और बेटियों के 8-10 बच्चों के अनुभव से उत्पन्न एक महानता का एहसास कौंध गया। 

“माल्किन मैं अब जाती घर जईके रोटी बनाना है बच्चों को खिलाना है ना।” 

“रुको कमला बाई कुछ खाना तुम यहाँ से ले जाना और ये 50 रुपये रखो और थोड़ी देर रुको।” 

“मालिकिन आप जरा फिक्र नको करो बचुआ अब नहीं रोयेगा सो जायेगा। फिर भी मैं रुकती।” 

नन्हा राजकुमार कमलाबाई के फार्मुले पर 3-4 मिनिट ही चुप रहा और फिर तेज़ आवाज़ में रोने लगा। अब स्वाति और मधु के कमला बाई की ओर घूरने की बारी थी और कमला बाई के सर झुकाने की।

“मालिकिन मेरी मानो बचुआ को कौनो नजर लग गई है ऐकै नजर उतारो। खड़ी मीर्च 21 बार उतार के जला दो सारी खराब नजरे खत्म हो जायेगी।” कमला बाई ने मोर्चा नहीं छोड़ा था लेकिन मधु कुछ और सोच रही थी उसे इन दकियानुसी तरीक़ों पर कोई विश्वास नहीं था। 

“मयंक तुम जाओ सोनी सिस्टर को बुला लाओ।” 

सोनी सिस्टर जो उसी कालोनी में रहती थी अनुभवी थी लेकिन उसका घर कालोनी के कुछ एक तरफ़ सुनसान वाले हिस्से में था। 

“मम्मी में अकेले नहीं जाऊँगा अनु दी को भी साथ भेजो।” 

“अरे डरपोक कहीं का अपनी कालोनी में भी नहीं जा सकता? मैं नहीं जाऊँगी,” अमिता ने कुछ कमज़ोर सा विरोध किया। 

“मम्मी तो मैं भी नहीं जाऊँगा,” मयंक ने खुला एलान कर दिया। 

“अम्मु जल्दी जाओ मयंक के साथ,” मधु ने अमिता को डाँटते हुए कहा। मुँह बिगाड़ती अमिता मयंक को लेकर सिस्टर को बुलाने चली गई। 

“मालिकिन मेरी बात मानो एक बार बचुआ के 21 मिर्च उतार के जला; दो ये सबई बुरी नजर का खेल है।” 

मधु ने मजबूरी में स्वाति की और देखा। स्वाति की नज़रों में अनुनय का भाव था और मधु उठकर किचन में चली गई खड़ी मिर्च लेने। थोड़ी ही देर में सोनी सिस्टर बच्चे को कुछ ड्रॉप पिला रही थी। इधर कोने में मधु बच्चे के बदन से उतारी गई 21 खड़ी मिर्च जला रही थी। 

जलती मिर्च की धाँस पूरे कमरे में फैल रही थी कमरे में उपस्थित लगभग सभी की खाँसी शुरू हो गई थी। मधु ने जल्दी-जल्दी जलती हुई मिर्चें कमरे के बाहर फेंकी। सिस्टर ड्रॉप देने के बाद बच्चे का पेट दबा-दबा कर देख रही थी। उसकी नब्ज़ टटोल रही थी लेकिन उसे भी कुछ समझ नहीं आ रहा था। और दूसरे ड्रॉप देना भी अभी उचित नहीं था क्योंकि कुछ देर पहले ही सारे ड्रॉप दिये जा चुके थे। 

“मैं एक ड्रॉप और देती हूँ शायद इससे चुप हो जाये।” 

“लेकिन कौन सा ड्रॉप है ये सिस्टर?” स्वाति ने चिंता से पूछा। 

“अरे ये छोटे बच्चों को कई बार सर्दी जम जाती है। वो श्वास नहीं ले पाता बराबर तो ये ड्रॉप बहुत कारगर होता है,” यह कहते हुए सिस्टर ने अपना एक प्रयोग कर डाला। 

नन्हे रजकुमार ने सिस्टर के प्रयास को कुछ रिस्पेक्ट दिया 1-2 मिनिट वो चुप हुआ ड्रॉप की दवाई से या रोते रोते थक जाने से। सिस्टर को अपने ज्ञान का और अनुभव का कुछ गुमान हुआ लेकिन यह गुमान सिर्फ़ दो मिनिट रहा बच्चा फिर सिसकने लगा। 

सिस्टर को कुछ समझ नहीं आ रहा था। ये लग रहा था कि वो अँधेरे में हाथ-पैर मार रही है। स्वाति की नम आँखें और बच्चे का रुदन अब मधु से देखा नहीं जा रहा था उसने पतिदेव को फोन लगाकर तत्काल घर आने का बोला साथ ही कुछ मेडिसीन भी लाने का। 

“मम्मी आप बड़ी मौसी को बुलाओ वो बहुत एक्स्पर्ट है हमारे परिवार की ज़्यादातर डिलेवरी उन्होंने ही करवाई है।”

“अरे बेटा अब उन्हें तकलीफ़ देना ठीक रहेगा?” 

“अरे मम्मी ये रोये जा रहे हैं और तुम उनको तकलीफ़ देना ठीक रहेगा या नहीं ये सोच रही हो? आप उन्हें अभी फोन लगाओ।”

“ठीक है बेटा,” परेशान मधु ने अपनी बड़ी बहन को फोन लगाया। 

और कुछ ही देर में बच्चे की बड़ी मौसी भी आ चुकी थी। 

“क्या मधु तुम दोनों एक बच्चे को भी चुप नहीं करा पाईं; लाओ मुझे दो,” कहते हुए बड़ी मौसी ने राजकुमार को अपने कंधे पर लिया उसे पुचकारते हुए कमरे में घूमने लगी। नए-नए स्पर्श अनुभव को महसूस करते हुए राजकुमार ने अपने नये शुभेच्छु की ओर देखा मानो उनकी क्षमता महसूस कर रहा हो, उन्हें तोल रहा हो। 

कुछ क्षण के लिए उसका रुदन कमज़ोर पड़ा सबको लगा अब वो चुप हो जाएगा। मौसी भी कुछ मान में आने लगी थी। उनके चेहरे पर कुछ अनुभव की गर्व मिश्रित मंद मंद संतुष्टि भाव आने लगे थे। तभी उस महाबली राजकुमार ने मौसी के अस्तित्व को नकार दिया और ज़ोरों से रोना शुरू कर दिया। मौसी का निराशाजनक स्वर गूँजा, “मधु स्वाति ने शाम को क्या खाया था?” 

मधु और स्वाति दोनों चुप थे दोनों अपराध बोध से ग्रस्त थे। मधु सोच रही थी वह बहन को बताएँ या नहीं कि स्वाति ने पकोड़े खाए थे और स्वाति सोच रही थी अब ज़िन्दगी में कभी पकोड़े नहीं खाऊँगी। 

मौसी द्वारा फिर बच्चों के दिये जाने वाले ड्रॉप के नाम दोहराए गए उन्होंने तत्काल सभी ड्रॉप देने की सहमति जताई। अब मौसी भी निरुपाय थी कमरे में अन्य बैठे परास्त योद्धाओं की ओर दृष्टि डालती हुई वो भी बैठ गई। इन पराजित योद्धाओं में एक संख्या और बढ़ चुकी थी। 

तभी नीचे गेट की घंटी बजी। स्वाति के पापा यानी मधु के श्रीमान मेडिकल स्टोर के स्वामी और इस बालयोद्धा के नाना आशीष बाबू आ रहे थे। वे तत्काल ऊपर आए, कमरे में उपस्थित भीड़ देखकर चकरा गए। कामवाली बाई, महल्ले में रहने वाली सोनी सिस्टर, स्वाति की मौसी और अन्य लोग।

“आप सब इतने लोगों के होते हुए भी एक बच्चे को चुप नहीं करा पाए।” 

“अरे तुम्हारा यह नाती हम में से किसी को भी कुछ नहीं समझ रहा है।”

“अच्छा बताओ कब से रोने लगा?” 

“शाम के बाद से स्वाति ने खाना खाकर दूध पिलाया और लेटी थी। इसे सोता जानकर वह भी सोने लगी थी और तभी इसने एकदम ज़ोरों से रोना शुरू कर दिया।”

आशीष बाबू का दिमाग़ मधु द्वारा दिए गए वर्णन में इस वाक्य पर अटक गया कि स्वाति ने खाना खाया और इस को दूध पिलाया। आशीष बाबू के सोचने की मुद्रा देखते ही मधु और स्वाति दोनों को तत्काल समझ में आने लगा कि पतिदेव किस सम्भावना पर पहुँचने वाले हैं और क्या पूछने वाले हैं।

तत्काल स्वाति रुआँसे स्वर में चिल्लाते हुए बोली, “पापा अब यह मत पूछना कि मैंने खाने में क्या खाया था।  या मैं बता देती हूँ मैंने दो पकौड़ियाँ खाई थीं और उनसे कुछ नहीं होता है।” 

पतिदेव चौंके कुछ मुस्कुराए, धीमे से बोले, “कोई बात नहीं बेटी लेकिन अभी थोड़े दिनों के लिए अपने स्वाद पर . . .”  

“प्लीज़ पापा,” स्वाति ने रोका। 

“ओके, ओके जाने दो।” 

“अच्छा आप यह बताओ ड्रॉप कौन-कौन से दिए हैं।” 

मधु को सारे ड्रॉप के नाम और उनका क्रम कंठस्थ हो चुका था, 2 मिनट में पतिदेव को उन्होंने बता दिया कि बच्चे को क्या-क्या दिया जा चुका है। आशीष बाबू ने मोनु को गोद में लिया। 1–2 ड्रॉप दुकान से और लेकर आए थे वो। उसकी एक-एक बूँद पिलाई लेकिन तभी बच्चे ने मुँह बनाया और उल्टी कर दी सारी दवाइयाँ बाहर निकल चुकी थीं। बच्चा ज़ोरों से रोने लगा और स्वाति भी चीख पड़ी। 

“अरे आपने कुछ ग़लत तो नहीं दे दिया?” मधु ने पति को टोका पतिदेव ने ड्रॉप के नाम और उसकी एक्सपायरी फिर से देखी। ग़लत तो कुछ भी नहीं है। 

मधु ने तत्काल आग्रह किया कि आप सब छोड़ो डॉ. गुप्ता को तत्काल बुला लो।

“लेकिन मधु, रात के 10:00 बजे इस समय बुलाना ठीक रहेगा?” 

“अरे यह बच्चा 2 घंटे से रो-रोकर बेहाल हो रहा है और तुम पूछ रहे हो ठीक रहेगा?” 

मधु के तेवर देख आशीष बाबू ने तत्काल डॉ. गुप्ता को फोन लगाया सारी बातें बताईं। उधर से डॉ. गुप्ता ने पूछना शुरू किया कौन-कौन से ड्रॉप दिये हैं साथ ही यह भी पूछा कि स्वाति ने शाम को क्या खाया था। डॉ. गुप्ता कुछ और जानकारी लेते या सलाह देते तब तक मधु ने पतिदेव के हाथ से मोबाइल छुड़ा लिया और तत्काल बोली, “प्लीज़ भाई साहब आप यहाँ आकर देखें। इस बच्चे ने सारे ड्रॉप फ़ेल कर दिये हैं; आप तत्काल आ जाएँ।” 

डॉक्टर साहब का निवास 10 मिनट की दूरी पर ही था। पतिदेव ने कहा, “हम दो-तीन लोग नीचे चलते हैं कमरा पूरा भरा गया है, डॉक्टर साहब आते होंगे।” मोनु का रुदन धीमी आवाज़ में जारी था और स्वाति बहुत चिंतित हो रही थी एसा क्या हो गया उसके नन्हे बच्चे को। 

कुछ ही देर में डॉ. गुप्ता नीचे आ चुके थे। मधु और पतिदेव नीचे उनका इंतज़ार कर रहे थे। डॉ. गुप्ता को लेकर पूरा क़ाफ़िला वापस स्वाति के कमरे की ओर चल पड़ा। डॉ. गुप्ता चलते हुए पतिदेव से रात की जानकारी ले रहे थे। तभी मधु चौंकी स्वाति के कमरे से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। वह दौड़ पड़ी। कमरे में घुसने के पहले ही स्वाति की तेज़ आवाज़ मधु को सुनाई दी।

“अरे माँ ये तो सो गए।” 

“क्या?” मधु स्वाति के पलंग के पास पहुँच चुकी थी। 

“ममा मैंने अभी फिर दूध पिलाने की कोशिश की, दो-चार घूँट लिया होगा दूध और यह सो गए,” मधु की नज़रें नन्हे-मुन्ने राजकुमार पर टिकी थीं। तभी डॉक्टर गुप्ता भी पलंग के पास पहुँचकर नन्हे योद्धा का पेट दबा रहे थे उसे उलटा कर पीठ दबा रहे थे फिर मोनु की आँखें ग़ौर से देख रहे थे और फिर स्टेथोस्कोप लगाकर श्वसन तंत्र चेक कर रहे थे। रूम में उपस्थित सारे परास्त योद्धाओं की साँसें रुकी हुई थीं और आँखें डॉ. गुप्ता के चेहरे पर टिकी हुई थीं और वे सतत बच्चे को चेक करते एक-एक गतिविधि पर नज़र रख रहे थे। बच्चे का हर तरह से चेकअप करके सबके चहरों पर नज़र घुमाते हुए डॉक्टर ने घूम कर आशीष बाबू को देखा, “नथिंग रांग आल इज़ ओ के।” 

“लेकिन डॉक्टर साहब?” 

“नहीं भाई साहब, अभी तो . . .” मधु बोलने की कोशिश कर रही थी।

कमरे में उपस्थित अन्य लोग बोल पड़े, “अरे अभी तो बहुत रो रो कर . . .” 

डॉ. गुप्ता ने सब को रोक दिया, “प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़! नन्हे बच्चे ऐसे ही होते हैं ज़रा सा भी कुछ एब्नॉर्मल हो तो ऐसे ही प्रतिक्रिया होती है कुछ हो गया होगा।” तभी डॉ. गुप्ता की नज़र स्वाति के बिस्तर पर बच्चे के द्वारा की गई उल्टी पर पड़ी जो साफ़ तो कर दी गई थी लेकिन उसके निशान बने हुए थे। 

“क्या बच्चे ने उल्टी भी की थी?” 

“हाँ, हाँ की थी।” 

“फिर उसके बाद रिलैक्स हुआ?” 

सभी एक दूसरे का मुँह देख रहे थे। 

“मे बी सम ओवरडोज़ ऑफ़ फ़ीड आर ड्रॉप।” 

किसी के पास कोई जवाब नहीं था लेकिन एक सुकून सबके चेहरों पर धीरे-धीरे आ रहा था। जो भी हुआ हो सब को हराकर, सबका अनुभव व्यर्थ घोषित कर नन्हा योद्धा युद्ध समाप्त कर अपनी आरामगाह में जा चुका था और बड़े चैन से स्वाति की गोद में सो रहा था।

डॉ. गुप्ता ने आशीष बाबू की ओर देखा—अब? 

“बस अब क्या . . . नीचे बैठते हैं चाय पीते हैं।” 

मधु डरी स्वाति भी डरी, “हैलो प्लीज़ अंकल आप थोड़ी देर रुकें। क्या पता ये महाशय आपके जाने के बाद फिर हम सबको बहादुरी दिखाने लग जाये।” 

“ओके ओके में 15 मिनिट रुकता हूँ तब तक हम चाय पीते हैं।” 

और डॉ. गुप्ता आशीष बाबू और मधु सभी नीचे चल दिये थे। स्वाति, मौसी सिस्टर और कमला बाई अभी तक एक टक उस नन्हे राजकुमार को देख रहे थे। उन्हें पूरा-पूरा लग रहा था कि अभी एक दम ये नन्हा फ़रिश्ता डॉ. गुप्ता को भी फ़ेल कर देगा। चिल्ला कर रो पड़ेगा। 

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। नन्हा फ़रिश्ता आज के इतने पराक्रम से संतुष्ट होकर थक कर गहरी नींद में सो चुका था। स्वाति को भी नींद आने लगी थी। डॉ. गुप्ता जा चुके थे। 

अन्य पराजित लोग धीरे धीरे जा रहे थे। 

स्वाति ने अधमुँदी आँखों से मम्मी पापा को आदेश दिया, “मम्मी पापा आप दोनों रात भर यहीं रहोगे। मैं सो रही हूँ।” 

और मधु आशीष बाबू का खाना लगाने जा रही थी, “आप पकौड़े खाओगे ना मैं गरम गरम उतार देती हूँ।” 

सोते सोते चौंकी स्वाति . . . चिल्लाई . . . मम्मी आज के बाद कभी पकौड़े मत बनाना। 

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