फ़ैशन के रंग

अमित कुमार सिंह

मिनी-माइक्रो की बहार
चारों ओर है छाई
नये जींस को फाड़कर
फ़ैशन ने ली है अँगड़ाई
महँगाई के इस दौर में
बचत की करती हुई बड़ाई
कम कपड़ों वाले
फ़ैशन की बेल है
देखो लहराई। 
 
एक मीटर की जगह
आधे से काम चलाओ
पूरा ढकने के बजाय
थोड़ा सा तन दिखलाओ। 
बिगड़े काम को बनाने का
इससे आसान नहीं है
कोई उपाय, 
जिसने ये समझ अपनाई, 
 
वो ही करेगा
नये जमाने में
फ़ैशन की अगुआई। 
प्रसिद्धि और कमाई का
अनोखा है ये मेल
ग़ज़ब है भाई “अमित” 
फ़ैशन का ये
अलबेला खेल। 
 
ऊँच-नीच का अब
रहा न कोई भेद, 
फ़ैशन ने कर दिया
अब सबको एक। 
ग़रीबी के कारण
जो ढक न पाते थे
अपना पूरा तन, 
बन गये हैं वो
अब फ़ैशन की
उड़ती पतंग। 
 
फ़ैशन का छाया
ऐसा रंग
अमीर भी पहन रहे हैं
अब कपड़े तंग। 
मेकअप ने ऐसा
बुना है जाल, 
पहचानना मुश्किल है
किस रंग की है खाल। 
काले-गोरे का भेद
मिटाने की
इससे बेहतर भला
कौन सी चाल। 
 
फ़ैशन का पड़ा है
ऐसा प्रभाव, 
युवतियों के तन पर
हो गया है
कपड़ों का अभाव। 
फ़ैशन के रंग में रँगी
ये युवतियाँ फैला रही हैं
युवकों में ध्यान का संदेश, 
बिना योग-अभ्यास
के ही परमानन्द पाने का
दे रही हैं उपदेश। 
 
फ़ैशन की इस
मदमस्त आँधी में, 
मेल मिलाप का
अनूठा चला है दौर-
ऊपर और नीचे के
वस्त्रों ने आपस में
मिलने की है ठानी। 
ऊपर का वस्त्र चल
पड़ा है नीचे की ओर
करते हुए अपनी मनमानी। 
अपनी इज़्ज़त पर, 
हमला होते देख
नीचे का वस्त्र भी, 
धीरे-धीरे उठ
रहा है ऊपर की ओर
बोल रहा है वो भी
फ़ैशन की ही बानी। 

इन दोनों के संगम का
होने वाला दृश्य विहंगम
शायद होगा इस
अंधे फ़ैशन का
आख़िरी मंचन। 
फ़ैशन की इस दौड़ में
लगता है हम आगे
नहीं, बहुत पीछे
जा रहे हैं, 
आधुनिक युग में
आदम युग को पा रहे हैं। 

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