दूर चले आए अपनों से
डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ’अरुण’दूर चले आए अपनों से, जीवन को बेहद उलझाया!
संदेहों को पाला मन में, विश्वासों को ठुकराया!!
प्रश्नों के मरुथल में भटके,
उत्तर खोजे नहीं कभी!
उलझे रहे मीन-मेख में,
सीधी राह न चले कभी!!
तर्कों की राहों पर चल के, भाव का धन लुटवाया!
संदेहों को पाला मन में, विश्वासों को ठुकराया!!
स्नेह-दीप के उजियारों को,
अंधियारा हम ने समझा!
गैरों पर नित किया भरोसा,
अपनों को दुश्मन समझा!!
बने गुलाम बुद्धि के हर पल, भावों को खूब रुलाया!
संदेहों को पाला मन में, विश्वासों को ठुकराया!!
आँखों के आँसू तो सूखे,
अधरों पर मुस्काने ओढ़ी!
कृत्रिमता मन को भाई नित,
सहज भावना हैम ने छोड़ी!!
घुटघुट कर सोगई भावना,तर्कों को हमने अपनाया!
संदेहों को पाला मन में, विश्वासों को ठुकराया!!