बूढ़ा पेड़
सन्तोष कुमार प्रसाद
खोखला पेड़ बन गया हूँ मैं 
जो न किसी को छाँव दे सकता है 
और न हवा . . . बयार 
उद्देश्य विहीन सा हो गया हूँ 
मेरी शाखाओं में न जाने 
कितनी पीढ़िया खेल कर निकल गयी 
मेरे फलों का स्वाद लिया 
मेरे बीजों से कितने छोटे पौधे तैयार हुए . . . आबाद हुए 
पर अब वो नज़र बदल गयी 
पर अब सब की नज़र है 
कि मैं सूख जाऊँँ 
और गिर जाऊँँ 
उस जगह से 
ताकि नए का उत्थान हो!
