बिम्ब

रत्नकुमार सांभरिया (अंक: 204, मई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

कार्यालय-प्रमुख के चैम्बर में बैठे छोटे अधिकारी की नज़र बॉस के दाहिने हाथ के अँगूठे पर पड़ी। वह काठ हो गया, साहब रिटायर होने को आये, नाख़ून बच्चों की तरह काटते हैं, अँंगूठा ही कटा लिया, अपना। 

उसने चश्मा हटाकर रूमाल से आँखें पोंछीं। चश्मा पुनः चढ़ा लिया और एकटक अँंगूठे को देखता रहा, मछली की आँख की तरह। अनायास उसके मन की व्यथा छलक पड़ी। उसने बॉस से अनुनयपूर्वक कहा, “अजी साहब, आपके अंँगूठे से ख़ून बह निकला है।” उसकी खिचड़ी हो रही मूँछों के बाल हुचकने लगे थे। 

साहब ने फ़ाइल से नज़र उठाई। उसकी ओर देखा और फिर टिप्पणी लिखने में मशग़ूल हो गए। अपने बॉस की लापरवाही आँख में पड़ी कुनक की तरह उसको अखरी। उसने उनसे विनती की, “साहब, नाख़ून काटते वक़्त आपका अँगूठा कट गया है, पट्टी करवा आइये।”

बड़े साहब ने सामने पड़ी फ़ाइल को उठाया और पताका लगे पृष्ठ को निकालकर पढ़ने लग गये। मातहत अधिकारी का मानो स्वयं का हाथ कट गया था। एक तड़पन-सी हुई उसे। वह कुर्सी से उकसा, गर्दन आगे बढ़ाई और बोला, “साहब आप जल्दी से जाकर पट्टी करवा आइये, टिटनेस का इंजेक्शन ज़रूर लगवाइयेगा। न जाने ब्लैड जंग खाया हो।” उसने चिंता जताई, “अजी साहब, बरसात का मौसम है, जीवाणु सक्रिय हैं।”

उसकी ओर देखकर साहब ने अपनी गुद्दी खुजलाई और फिर फ़ाइलें निकालने में व्यस्त हो गए। अधीनस्थ अधिकारी से क़तई नहीं रहा गया। वह बेहाल हुआ जाता था। उसने अपनी जेब से रूमाल निकाला। रूमाल को दाँतों से कुतरा और दोनों हाथों की चुटकी से पकड़कर उसकी फाड़ें कर लीं। एक फाड़ हाथ में लिए वह बॉस के निकट खड़ा हो गया। उनके अँगूठे को पकड़ कर वह कहने लगा, “सर, कुछ देर के लिए यह पट्टी बाँध लीजिएगा, आप।”

बॉस ने अपना अँगूठा उससे छुड़ा लिया। उसकी ओर तिक्त नज़रों से देखते कहने लगे, “अरे भई, यह ख़ून-वून नहीं है। लाल पेन से काम कर रहा था न, स्याही लग गयी उसकी।”

वे फिर फ़ाइलें देखने लग गये थे।

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