बलवंत मनराल: जीवन एवं साहित्य

01-06-2023

बलवंत मनराल: जीवन एवं साहित्य

डॉ. पवनेश ठकुराठी (अंक: 230, जून प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

हिंदी के साठोत्तरी साहित्यकारों में बलवंत मनराल का नाम आदर के साथ लिया जाता है। एक कवि, कथाकार एवं संपादक के रूप में प्रसिद्ध बलवंत मनराल का जन्म 10 अगस्त, 1940 ई. को उत्तराखंड केे ऐतिहासिक कत्यूरी वंश के राजपूत घराने में सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में हुआ था। आपकी माता का नाम श्रीमती गोविंदी देवी तथा पिता का नाम श्री शिवेंद्र सिंह मनराल था। बलवंत मनराल का प्रारम्भिक जीवन रानीखेत तथा अल्मोड़ा की हरी-भरी वादियों में बीता। रानीखेत कैंट की एक पाठशाला में दूसरी कक्षा तक की शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत उन्होंने राजकीय इंटर कॉलेज अल्मोड़ा से 1954 ई. में हाईस्कूल, रामजे इंटर कॉलेज अल्मोड़ा से 1958 ई. में इंटरमीडिएट, अल्मोड़ा डिग्री कॉलेज, आगरा विश्वविद्यालय से 1960 में बी.ए., 1962 में एम.ए. तथा 1963 ई. में बी.टी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात दिल्ली के शासकीय विद्यालय में 1963 से 1989 तक अध्यापन कार्य करते रहे। 

जून 1965 ई. में बलवंत मनराल का विवाह नैनीताल के तत्कालीन ट्रेजरी ऑफ़िसर श्री उमेद सिंह खाती की पुत्री सुधा खाती के साथ हुआ, जो विवाह से पूर्व एम.ए. (अर्थशास्त्र), बी.टी. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत राजकीय महिला इंटर कॉलेज पीलीभीत में अध्यापन कार्य करती थीं। विवाह के बाद नौकरी से त्यागपत्र देकर दिल्ली में ही शासकीय विद्यालय में टी.जी.टी. के रूप में शिक्षण कार्य करने लगी। 

साठ के दशक में बलवंत मनराल की पहचान एक उभरते कहानीकार के रूप में होने लगी थी। जब उस समय की प्रतिष्ठित ‘कहानी’ पत्रिका में उनकी कहानियाँ छपने लगीं। इसके बाद 20 जनवरी, 1962 ई. में जब ‘धर्मयुग’ में उनकी ‘धनुली’ कहानी छपी तो इससे राष्ट्रीय स्तर पर उनकी एक पहचान बनने लगी। इसके बाद तो ‘कादम्बिनी’, ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’, ‘ज्ञानोदय’, ‘सरिता’, ‘स्वतंत्र भारत’, ‘साहित्य संदेश’, ‘धर्मयुग’, ‘मुक्ता’ आदि तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कहानियाँ, कविताएँ एवं लेख आदि निरंतर प्रकाशित होते रहे। 

बलवंत मनराल ने साहित्य की सभी विधाओं में क़लम चलाई। उनकी कुल 22 पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। ये पुस्तकें हैं: 1. पहाड़ आगे: भीतर पहाड़ (कविता संग्रह), 2. धीरो बैणा धीरो (कहानी संग्रह), 3. महानगर का आदमी (कहानी संग्रह), 4. प्रचंड शौर्य का महासूर्य (लेख संग्रह), 5. खड़े-ठाड़े (हास्य व्यंग्य), 6. उलट-फेर (कहानी संग्रह), 7. बिन पायों का पलंग (कहानी संग्रह), 8. एक ख़ून यह भी (कहानी संग्रह), 9. कैक्टस (लघु कथा-संकलन), 10. मेल मिलावट जिंदाबाद (हास्य-व्यंग्य रचनाएँ), 11. श्री शिष्यदेव-गुरू अनीति कथा (हास्य-व्यंग्य लघु उपन्यास), 12. गऊ, दूध और पानी (हास्य-व्यंग्य रचनाएँ), 13. सागर, रत्न और पत्थर (हास्य-व्यंग्य कहानियाँ), 14. सर्दियाँ अल्मोड़े की (काव्य-संकलन), 15. अटल पहाड़ चलता है (काव्य-संकलन), 16. बुरांश के फूल हैं (काव्य-संकलन), 17. चुनाव चक्कलस (हास्य-व्यंग्य), 18. कभी न होगा अंत (काव्य-संकलन), 19. बजते बाजे (बाल कविताएँ), 20. कैसी बोली किसकी (बाल कविताएँ), 21. सुमन एक उपवन के (बाल कविताएँ), 22. जो जागे सो पावे (बाल कहानी संग्रह)। 

इनकी 500 रचनाएँ धर्मयुग, कहानी, कादम्बिनी, हिंदुस्तान, साप्ताहिक हिंदुस्तान आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। इनकी रचनाओं का मराठी, गुजराती, उर्दू आदि भारतीय भाषाओं व अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद हो चुका है। 

मनराल जी ने कत्यूरी मानसरोवर (त्रैमासिक), नगराज (साप्ताहिक) व निष्ठा (अनियमितकालीन) पत्रिकाओं का संपादन किया। इन्होंने राज्य शिक्षा संस्थान दिल्ली के हिंदी संदर्भ व्यक्ति के रूप में दो वर्ष तक व्याख्यान तथा लेखन का कार्य किया। ये सैन्ट्रल बोर्ड ऑफ़ सेकेन्ड्री एजुकेशन, नई दिल्ली की ओर से हिंदी पाठ्यक्रम समिति के लगभग साढ़े तीन वर्ष तक सदस्य रहे। मनराल जी लेखक संघ (कुमाऊँ), साहित्य मित्र मंडली, कूर्मांचल परिषद समाज आदि संस्थाओं में अध्यक्ष या मुख्य सचिव के रूप में सक्रिय योगदान दिया। ये कत्यूरी लोकसेवी सेना के संयोजक भी रहे। 

बलवंत मनराल को उनकी साहित्य सेवा हेतु अनेक बार पुरस्कृत व सम्मानित भी किया गया। दिल्ली साहित्य कला परिषद द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में इनकी ‘एक ख़ून यह भी’ कहानी को प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ था। कादम्बिनी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में इनकी ‘बिन पायों का पलंग’ कहानी को प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ था। इन्हें समागम, राष्ट्रीय शिक्षा परिषद (दिल्ली) नव साहित्य भारती, साहित्य मित्र मंडली, मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला एवं विज्ञान मंच आदि संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया। इन्हें उत्तरांचल राज्य की कला एवं संस्कृति परिषद द्वारा ‘सारस्वत’ सम्मान व मुंबई की प्रतिष्ठित संस्था ‘हिमाद्री’ द्वारा ‘उत्तराखंड गौरव’ सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके अलावा इन्हें विविध संस्थाओं द्वारा मनीषी, पर्वतमणि, लोकवीर उपाधियों से भी नवाज़ा गया। 

25 अक्टूबर, 1987 को मनराल जी ब्रेन हैम्रेज के कारण पक्षाघात की चपेट में आ गए। इसके कारण उनका स्पीच सैंटर क्षतिग्रस्त हो गया और चलना, फिरना, बोलना, लिखना सब बंद हो गया, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने भावों को कविता के रूप में पंक्तिबद्ध करने का निरंतर प्रयास किया। 25 वर्ष की शासकीय सेवा के उपरांत अगस्त, 1989 को उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। सेवानिवृत्ति के बाद मनराल जी अल्मोड़ा आ गये और यहाँ अपने पक्षाघात पीड़ित मस्तिष्क से संघर्ष करते हुए कत्यूरी मानसरोवर पत्रिका का संपादन करने लगे। साहित्यकार बलवंत मनराल के संघर्षमय जीवन में उनकी पत्नी श्रीमती सुधा मनराल ने सदैव साथ निभाया और एक आदर्श भारतीय नारी होने का परिचय दिया। 20 जून, 2007 को स्वास्थ्य से जूझते हुए ही दिल्ली के राजीव गाँधी कैंसर अस्पताल में अपराह्न साढ़े तीन बजे आपका निधन हो गया। 

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