प्रेमचंद के उपन्यासों में चित्रित उत्तराखण्ड के तीर्थस्थल

15-02-2022

प्रेमचंद के उपन्यासों में चित्रित उत्तराखण्ड के तीर्थस्थल

डॉ. पवनेश ठकुराठी (अंक: 199, फरवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

तीर्थ किसी भी समाज और संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग होते हैं, यही कारण है कि उस समाज के साहित्य में भी तीर्थ अपना स्थान अवश्य पाते हैं। वस्तुतः तीर्थ शब्द का अर्थ हैं तरा देने वाला, पार उतार देने वाला। ‘तरति पापादिक यमात अथवा पापादिकेभ्य’ अर्थ में ‘तृ’ धातु से ‘धक’ प्रत्यय करके ‘तीर्थ’ शब्द निष्पन्न होता है। केदारखण्ड पुराण के अनुसार जिन स्थानों की यात्राएँ करके देवदर्शन किए जाते हैं, जिन स्थानों का दर्शन करके तथा स्नान करके मन पवित्र होता है और जिनके द्वारा लौकिक एवं पारलौकिक दुःखों से उद्धार होता है, वे तीर्थ कहलाये जाते हैं।1 इस प्रकार तीर्थ वे आध्यात्मिक स्थल हैं, जहाँ पर पहुँचकर मनुष्य को आत्मिक शांति एवं आनंद का अनुभव होता है। 

कथाकार प्रेमचंद मूलतः उत्तरप्रदेश के बनारस जिले से संबद्ध हैं, किंतु उनके उपन्यासों में कई स्थानों पर उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों का उल्लेख हुआ है। उनके वरदान (1912 ई.), रंगभूमि(1925 ई.), कायाकल्प(1926 ई.), निर्मला(1925 ई.) और गबन(1931 ई.) उपन्यासों में यहाँ के विभिन्न तीर्थस्थल चित्रित हुए हैं। प्रेमचद के उपन्यासों में चित्रित उत्तराखण्ड के तीर्थस्थल निम्न प्रकार से हैं:

 

1. ऋषिकेश: हरिद्वार से 24 किमी. उत्तर, टिहरी देहरादून की सीमा पर गंगा और चंद्रभागा नदी के संगम पर स्थित ऋषिकेश उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। पौराणिक रूप से स्कंदपुराण के उपपुराण केदारखण्ड के अनुसार इस नगरी का प्राचीन नाम कुब्जाभ्रा का तीर्थ था।2 धार्मिक ग्रंथों के अनुसार रैभ्य मुनि द्वारा इस स्थान पर इंद्रियों को जीतकर ईश्वर को प्राप्त किया गया, इसलिए इस स्थान का नाम ऋषिकेश (इंन्द्रियों का स्वामी विष्णु) पड़ा। उच्चारण दोष के कारण अब इसे ऋषिकेश नाम से जाना जाता है।3 प्राचीनकाल से ही यह नगरी ऋषि मुनियों की तपस्थली और आध्यात्मिक नगरी के रूप में प्रसिद्ध है।

प्रेमचंद के वरदान उपन्यास में इस तीर्थस्थल का उल्लेख हुआ है। इस उपन्यास की नायिका विरजन सेवती से ऋषिकेश में लालाजी (मुंशी सं जीवन लाल) से प्रतापचंद की भेंट होने की बात कहती है: “तुम लोग मेरे लालाजी को तो भूत ही गयीं। ऋषिकेश में पहले लालाजी ही से प्रतापचंद्र की भेंट हुई थी।’’4

 

2. मानसरोवर: पवित्र मानसरोवर या मानस सरोवर विश्व की समस्त झीलों में पवित्रतम, सर्वाधिक मोहक एवं प्रेरणास्रोत होने के साथ-साथ मानव सभ्यता के ज्ञात इतिहास में प्राचीनतम झील है।5 यह नगाधिराज हिमालय में कैलाश पर्वत के निकट स्थित है। कहा जाता है कि इस झील का निर्माण स्वयं ब्रह्मा ने किया था। आदिकाल से ही कैलाश-मानसरोवर को पवित्र तीर्थ माना गया है। जनश्रुति है कि मानसरोवर के पवित्र जल में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।6 यह एक वृत्ताकार गहरी नीली झील है। हिंदुओं की मान्यता है कि इस झील के चारों ओर परिक्रमा करने से जीवन के समस्त पाप धुल जाते हैं और इसके जल का सेवन करने से व्यक्ति सैकड़ों जन्मों से छुटकारा पाकर परमतत्व को प्राप्त होता है।

प्रेमचंद के वरदान उपन्यास में विरजन सेवती से अपने पिता मुंशी संजीवनलाल और प्रतापचंद्र के मानसरोवर जाने की बात कहती है: “रुक्मिणी यह भी ईश्वर की प्रेरणा थी, नहीं तो प्रतापचंद मानसरोवर क्या करने जाते? सेवती ईश्वर की इच्छा के बिना कोई बात होती है?

विरजन: तुम लोग मेरे लालाजी को तो भूल ही गयीं। ऋषिकेश में पहले लालाजी ही से प्रतापचंद्र की भेंट हुई थी। प्रताप उनके साथ साल भर तक रहे। तब दोनों आदमी मानसरोवर की ओर चले।’’7

 

3. बद्रीनाथ: बद्रीनाथ उत्तराखण्ड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। यह देश के चार धामों में से एक है। इसकी स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी। पुराणों में बद्रीनाथ को योगसिद्धा, मुक्तिप्रदा, बदरीवन, बद्रिकाश्रम, नरनारायणश्रम, विशाला आदि अनेक नामों से संबोधित किया गया है। यह मंदिर सिंहद्वार, मण्डल और गर्भगृह 3 भागों में विभाजित है। यहाँ स्थित पंचकुण्ड (तप्तकुण्ड, नारदकुण्ड, सत्पथकुण्ड, त्रिकोणकुण्ड, मानुषीकुण्ड), पंच शिला (गरुड़, नारद, मार्कंडेय, नृसिंह, ब्रह्मकपाल शिला) पंच धारा (कूर्म, प्रहलाद, इंदु, उर्वशी, भृगु धारा) और स्कंद, मुचकुंद, गरुड़शिला, गणेश, व्यास, राम आदि गुफाओं का अत्यधिक महत्व है। भगवान नारायण, जिनकी नाभि कमल से प्रजापति ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई का निवास होने के कारण ही पुराणों में सर्वश्रेष्ठ तपोभूमि बद्रिकाश्रम और चारों धारों में श्रेष्ठ धाम बदरीनाथ कहा गया है:

बहूनि संति तीर्थानि, दिवि भूमि रसासु च 
बदरी सदृषं तीर्थ, न भूतो न भविश्यति।8

प्रेमचंद के रंगभूमि, कायाकल्प और गबन उपन्यासों में बद्रीनाथ का सुंदर चित्रण हुआ है। इनके रंगभूमि उपन्यास में दयागिरि, सूरदास से शिवरात्रि के बाद तीर्थ यात्रा हेतु बद्रीनाथ जाने की बात करता है “रही तीर्थ यात्रा उसके लिए रुपये की जरूरत नहीं। साधु  संत जन्म भर यही किया करते हैं, पर घर से रुपयों की थैली बाँधकर नहीं चलते। मैं भी शिवरात्रि के बाद बद्रीनारायण जाने वाला हूँ। हमारा-तुम्हारा साथ हो जाएगा।’’9

उनके कायाकल्प उपन्यास में अहिल्या शंखधर के सामने जो किताब उठाती है, उसमें बद्रीनाथ का उल्लेख होता है “अहिल्या ने उसके सामने से खुली हुई किताब उठा ली और दो चार पंक्तियाँ पढ़कर बोली इसमें तो तीर्थों का हाल लिखा हुआ है। जगन्नाथ, बद्रीनाथ, काशी और रामेश्वर।’’10 उनके इसी उपन्यास में बज्रधर शंखधर को बताया है कि गायन विद्या की बदौलत उसने बद्रीनाथ की यात्रा की थी: “मैंने तो एक बार इसी विद्या की बदौलत बद्रीनाथ की यात्रा की थी।’’11

इन उपन्यासों के अतिरिक्त उनके गबन उपन्यास में भी बद्रीनाथ की तीर्थयात्रा का चित्रण है। इस उपन्यास में सफ़र के दौरान रमानाथ को देवीदीन की बद्रीनाथ यात्रा के बारे में पता चलता है और दोनों के बीच बातचीत होती हैं: “रामानाथ ने आश्चर्य से पूछा तुम बदरीनाथ की यात्रा कर आये? वहाँ तो पहाड़ों की बड़ी-बड़ी चढ़ाइयाँ हैं। देवी-भगवान की दया होती है तो सब कुछ हो जाता है, बाबूजी! उनकी दया चाहिए।’’12

 

4. हरिद्वार: हरिद्वार भी उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध तीर्थस्थल और आध्यात्मिक नगर है। पुराणों और प्राचीन संस्कृत साहित्य में इसे देव-द्वार, स्वर्ग-द्वार, गंगा-द्वार, मायापुरी, तीर्थस्थलों का प्रवेश द्वार चार धामों का द्वार आदि नामों से संबोधित किया गया है। पद्मपुराण में इसके विषय में कहा गया है - 

“हरिद्वारं महापुश्यं श्रृणु देवर्षि सत्तम।
यत्र गंगा बहत्येव तत्रोक्तं तीर्थमुतमम॥

अर्थात् यह महापुण्य वाला तीर्थ है। यहाँ महादेव, देवऋषि तथा साक्षात् विष्णु का निवास है। यह तीर्थ सर्वोत्तम तीर्थ है, जो सारे पापों को नष्ट करने वाला है।’’13
यहाँ धार्मिक महत्व के अनेक मंदिर, कुण्ड, घाट और धाराएँ स्थित है। हर की पौड़ी (ब्रह्मकुण्ड), मनसादेवी मंदिर, चंडीदेवी मंदिर, भारतमाता मंदिर, सप्तऋषि आश्रम, भीमगोडा, गऊघाट, कुशावर्तघाट, श्रवणनाथघाट, रामघाट, गंगा नील धारा, गायत्री मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर आदि यहाँ के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल हैं। यहाँ प्रति 12 वर्ष में कुंभ और प्रति छह वर्ष में अर्द्धकुंभ का मेला लगता है। इस दौरान यहाँ गंगा-स्नान एवं मोक्षप्राप्ति की इच्छा हेतु लाखों देशी-विदेशी श्रद्धालु और तीर्थयात्री आते हैं।

प्रेमचंद के निर्मला उपन्यास में परमानंद, सियाराम से इसी हरिद्वार की यात्रा होने की बात कहता है: “हम लोग तो आज यहाँ से जा रहे हैं बच्चा, हरिद्वार की यात्रा है।’’14 

इनके कर्मभूमि उपन्यास में मुन्नी शान्तिकुमार से स्वयं को हरिद्वार या किसी दूसरे तीर्थस्थान भेजने की बात कहती है-“बाबू जी आप लोगों ने मेरा जितना सम्मान किया, मैं उसके जोग नहीं थी, अब मेरी आपसे यही विनती है कि मुझे हरद्वार या किसी दूसरे तीर्थ स्थान भेज दीजिए।“ 15

इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रेमचंद के उपन्यासों में उत्तराखण्ड के ऋषिकेश, मानसरोवर, बद्रीनाथ और हरिद्वार तीर्थस्थलों का चित्रण हुआ है। इनमें भी बद्रीनाथ का सर्वाधिक बार, तीन उपन्यासों रंगभूमि, कायाकल्प और गबन में उल्लेख हुआ है। उनके उपन्यासों में ये स्थल आध्यात्मिक महत्व के तीर्थस्थल रूप में और लोकजन की आस्था के केन्द्र रूप में प्रकाश में आए हैं। ‘वहाँ तो पहाड़ों की बड़ी-बड़ी चढ़ाइयाँ हैं’16 कथन उत्तराखण्ड में तीर्थयात्रा के दौरान पड़ने वाली मार्ग बाधा की ओर संकेत करता है।

संदर्भ सूची:

  1. साहित्य प्रभा (त्रैमासिक), सं. डॉ. चंद्रसिंह तोमर ‘मयंक’, जनवरी-मार्च, 2014, पृ. 2

  2. उत्तराखण्ड समग्र ज्ञानकोश, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बलोदी, बिनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून 2010, पृ. 123

  3. उत्तराखण्ड सामान्य अध्ययन, केसरी नंदन त्रिपाठी एवं डॉ. आलोक कुमार, बौद्धिक प्रकाषन इलाहाबाद, 2011-12, पृ. 149 

  4. वरदान, प्रेमचंद मनोज पाकेट बुक्स, दिल्ली, पृ. 106

  5. उत्तरखण्ड समग्र ज्ञानकोश, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बलोदी, बिनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून, 2010, पृ. 265

  6. वही, पृ. 265

  7. वरदान, प्रेमचंद, मनोज पाकेट बुक्स, दिल्ली, पृ. 106

  8. उत्तराखण्ड समग्र, ज्ञानकोश, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बलोदी, बिनसर पब्लिशिंग कम्पनी देहरादून, 2010, पृ. 214

  9. रंगभूमि, प्रेमचंद मनोज पाकेट बुक्स, दिल्ली, पृ. 48

  10. कायाकल्प, प्रेमचंद, मनोज पाकेट बुक्स, दिल्ली, पृ. 239 

  11. वही, पृ. 249 

  12. गबन, प्रेमचंद, मनोज पाकेट बुक्स, दिल्ली, पृ. 102

  13. उत्तराखण्ड समग्र ज्ञानकोश, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बलोदी, बिनसर पब्लिशिंग कम्पनी, देहरादून, 2010, पृ. 121

  14. निर्मला, प्रेमचंद, मनोज पाकेट बुक्स, दिल्ली, पृ.114

  15. कर्मभूमि, प्रेमचंद,मनोज पाकेट बुक्स,दिल्ली,पृ.60

  16. गबन, प्रेमचंद, मनोज पाकेट बुक्स, दिल्ली, पृ.102

—डॉ. पवनेश ठकुराठी 
अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड)
मो. 9528557051

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