बालकाव्य रामायण 

15-09-2024

बालकाव्य रामायण 

जितेन्द्र कुमार (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

रघुकुल की ये कथा पुरानी।
आओ सुनाऊँ तुमको प्राणी॥1॥
 
भारतवर्षे पुनीत अयोध्या।
शस्य श्यामल विरोचित भोग्या॥2॥
 
दशरथ थे जहं पावन राजा।
तिनके राम-लखन सुत साजा॥3॥
 
भरत-शत्रुघ्न मिल चार कहावत।
नाम लेत अति पुनि सुख पावत॥4॥
 
विश्वामित्र थे गुरु अति भारी।
सिय-उर्मिल अस पावन नारी॥5॥
 
मांडवी-श्रुतिकीर्ति वधू सुभीता।
पावन कुल से रहीं न रीता॥6॥
 
मंथरा के वश भई रानी।
 
आओ सुनाऊँ तुमको प्राणी।
रघुकुल की ये कथा पुरानी॥
 
मंथरा परवश भई जब रानी।
नृप सों कहनि लगी यह बानी॥1॥
 
वह दिन याद करौ तुम स्वामी।
देवासुर मंह वर दोउ आनी॥2॥
 
तेहिं प्रथम वर भरतहिं राजा।
दूजो रामहिं कानन साजा॥3॥
 
संग लखन-सिय चले वन रामा।
तजि पुरजन-परिजन औ धामा॥4॥
 
राजन को जस लागन तीरा।
छोड़ चले यह क्षणिक शरीरा॥5॥
 
भरत सम दूजो कोउ न भाई।
चरण पादुका राम की लाई॥6॥
 
मान पादुका को वह स्वामी।
 
आओ सुनाऊँ तुमको प्राणी।
रघुकुल की ये कथा पुरानी॥
 
चरन पादुका भई है स्वामी।
गुन भरत की बखात न जानी॥1॥
 
नर-मुनि-सुर सब भये अभीता।
तेरह वर्ष गए वने व्यतीता॥2॥
 
एक दिन सुपनखा गई आई।
राम लखन पुनि गई लोभाई॥3॥
 
सिय मम संगिनी है अति प्यारी।
पाणिग्रहण नहीं करूँ तोहारी॥4॥
 
सिय कारन जब लागन डाटी।
तेहि क्षन लखन नासिका काटी॥5॥
 
रावण निकट बहन जब आई।
छिन्न नासिका रही देखाई॥6॥
 
रावण क्रुद्ध भयहु जब आनी
 
आओ सुनाऊँ तुमको प्राणी।
रघुकुल की ये कथा पुरानी॥
 
होइ क्रोध में रावन बोला।
डगमग-डगमग दिग्गज डोला॥1॥
 
गया हरन सिय मारिच संगा।
कंचनमृग ने दिया अड़ंगा॥2॥
 
राम-लखन-सिय भए विभरामा।
करहु क्षल तब मारिच मामा॥3॥
 
रावण जानकी लिया उठाई।
झटपट लंका भागी पराई॥4॥
 
सीय वियोग रघुपतिहिं कीन्हा।
शबरी मात रामपद दीन्हा ॥5॥
 
मिल सुग्रीव सिय पता लगाई।
कपीश अशोक वाटिका आई॥6॥
 
सीता मातु से कहा नमामि।
 
आओ सुनाऊँ तुमको प्राणी।
रघुकुल की ये कथा पुरानी॥
 
सीता मातु सो कर परनामू।
लंका जारी करि प्रस्थानू॥1॥
 
लाँघी सिंधु पुनि आय समीपा।
दे सुधि मात जला अस दीपा॥2॥
 
वानर यूथ लंका प्रस्थानू।
सागर सेतु बनाया रामू॥3॥
 
दलपति अंगद नगरी जाई।
चाहत रावण को समुझाई॥4॥
 
उलटो रावण पकड़न चाही।
पांव अंगद ने दिया जमाई॥5॥
 
अंति समर का हुआ उद्घोषा।
लखनहि चले करत अति रोषा॥6॥
 
मेघनाद अति बड़ अभिमानी।
 
आओ सुनाऊँ तुमको प्राणी।
रघुकुल की ये कथा पुरानी॥
 
गर्वित हो घननाद है बोला।
लखन रोषि अम्बर भी डोला॥1॥
 
दोनों युद्ध करन हैं लागी।
लागत शक्ति चेतना त्यागी॥2॥
 
लखन वोहि क्षण भए अचेता।
सुखेन वैद्य ने किया सचेता॥3॥
 
कोई यदि संजीवन लाई।
प्रान लखन के तब बचि जाई॥4॥
 
लाने बूटी चले हनुमाना।
राम प्रभु को करि परनामा॥5॥
 
सत्वर ससमय बूटी ले आए।
लखन भ्रात के प्रान बचाए॥6॥
 
मेघनाद को मार गिरानी।
 
आओ सुनाऊँ तुमको प्राणी।
रघुकुल की ये कथा पुरानी॥
 
मेघनाद का दिन था अंता।
प्रान हरन लेहु उर्मिल कंता॥1॥
 
कुंभकरन है अबकी आया।
प्रभु श्रीराम ने मार गिराया॥2॥
 
हारे सकल रावण संघाती।
भारी पड़ी है वानर जाती॥3॥
 
अंते रावन स्वयं है आया।
एक से एक शस्त्रास्त्र चलाया॥4॥
 
मारो नाभि में प्रभु श्रीरामा।
दियो बताय विभीषन नामा॥5॥
 
तभी राम ने बाण चलाये।
रावण को सुरधाम पठाये॥6॥
 
क्षमा करहु मम बड़ अज्ञानी।
 
दिया सुनाई तुमको प्रानी।
रघुकुल की ये कथा पुरानी॥
 
वानर यूथ हर्षित चला, चला अयोध्या ओर।
जयतु-जयतु श्रीराम की, गूँजे चहुँ दिशि ओर॥
 
राम प्रभु राजन बने, मातु सिय महरानी।
राम की अनुपम कथा, मोसे बखात न जानी॥
 
हो यदि गलती कहीं, क्षमा करहु श्रीमान्।
आप सुधीजन को करूँ, विनती और परनाम॥
 
॥जय श्रीराम॥
 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें