आज़ादी का सपना
चंद्र मोहन किस्कू
खिड़की के उस पार से
झाँक रहीं वो दोनों आँखें
सपना देखती हैं
अनंत नीले आसमान का
सुगंध बिखेरनेवाली हवा का
और पंख पसारकर
हर्ष और आनंद के साथ उड़ने का
पर देखकर भी
देख नहीं पाईं
वह अनंत आसमान भी
देश की सीमा रेखा से बाँटा हुआ है
और सीमा पार करना
सख़्त मना है
खुली हवा में भी
बारूद की गंध ही
फैली हुई है
हर्ष और आनंद के साथ उड़ने पर
दुश्मनों की हिंसक
तीक्ष्ण तीर की धार
इंतज़ार में है
कोई-कोई सपना
देखने में जितना सुन्दर होता है
उतना ही मुश्किल होता है
सत्य की धरती पर
उसकी फ़सल उगाना
फिर भी ‘आज़ादी ’
और ‘उड़ने का सपना’
देखना भूलते नहीं
चाहे वह पक्षी हो
औरत हो
या खूँटी पर बँधी
गाय ही हो।
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