अपने गाँव की याद
चंद्र मोहन किस्कूमशीन की घर्र-घर्र आवाज़
गाड़ी-मोटरों की कर्कश आवाज़
चारों ओर शोर ही शोर
चारों ओर कारखानों की चिमनी
चिमनी से निकल रहे
काले धुँए से
नगर ढँक गया है।
पर...
ऐसे नगर में रहते हुए
एक ऐसी जगह ने
मेरे मन को चुरा लिया
मेरे मन को मोहित किया
याद हो आता है मन में
पहाड़-जंगलों से घिरा
पेड़-लताओं से सजा
वह मेरा गाँव है
हाँ, हाँ फूलों की वह
बगिया
मीठे कुँए का पानी
धूल- उड़ाती पगडण्डी
घनी पेड़ की छाँव
याद आ रही है
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