अपनी तो बीत गई
ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'अपनी तो बीत गई
कल्पना की ये बातें
अधूरे सपने ही हैं
आते हैं और जाते
राह आँख सुझाती
मंज़िल पैरों से पाते
ग़म की बात कही
अपनों से ही पाते
बढ़े चले जो राही
लक्ष्य वे ही पाते
अपनी तो बीत गई
कल्पना की ये बातें
अधूरे सपने ही हैं
आते हैं और जाते
राह आँख सुझाती
मंज़िल पैरों से पाते
ग़म की बात कही
अपनों से ही पाते
बढ़े चले जो राही
लक्ष्य वे ही पाते