अनुपस्थिति की उपस्थिति
डॉ. दीप्ति गुप्ता
मूल रचना: Presence of Absence
मूल रचनाकार: सर्बिया (यूरोप) की प्रख्यात वरिष्ठ कवयित्री ‘मिलिका लिलिक’ (Milica Lilic)
अनुवादक: डॉ. दीप्ति गुप्ता
तुम वो स्याह चाँद हो, जो मुझे
तुम्हारी ओर आकर्षित करता है
और मैं तुम्हारी ओर सम्मोहन में बँधी
ऊपर की ओर खींचती चली जाती हूँ
तुम मेरे पास न होते हुए भी
मुझ में बहुत अधिक समाए हुए हो
मैं तुम्हारे वुजूद के ख़ास
क्षितिजों के साथ एक हो जाती हूँ
मैं ‘लिलिथ’, हमेशा तुमसे
कुछ न कुछ चाहती रहती हूँ!
तुम मुझमें सिर्फ़ अपने ख़्यालों
से प्रवेश कर सकते हो
तुम इस बात को बख़ूबी जानते हो
और तब तुम मेरे संकेत की
मेरी सहमति की प्रतीक्षा करते हो
हालाँकि मेरे अन्तर्मन के द्वार बहुत बुलंद हैं
पर, तुम्हारे सिर्फ़ एक माकूल
शब्द के स्पर्श से वे खुल सकते हैं
स्पष्टता के बीच में
वह मेरी रगों में आक्रोश भरता है
वह मेरे और तुम्हारे बीच में
मानो साक्षात् नदी बन जाता है
हमारी कर्मों को धोने के लिए
समा जाता है मेरी कविता की
शाश्वतता में कभी भी,
अलग न होने के लिए!
मध्यरात्रि में एकाएक उग आए
सूरज को छुपाने के लिए
जो मादक सा चमकता है
पर विरोध करता है
जैसे कि सलेटी कबूतर
किसी पीड़ा से बेचैन हुआ मदद के लिए
बार-बार तुम्हारे ऊपर चक्कर काटे जाता है
और पीड़ा को दबाते हुए, तुमको
मानो धीमी नरम आवाज़ में पुकारता है
पूर्णमासी के उत्सव में
जहाँ मैं श्वेत परिधान में नृत्य करूँगी
एक फक्कड़ दरवेश की तरह
गोल-गोल घूमते हुए
सिर चकरा देने वाला नाच करूँगी
जब तुम पूरी तरह
मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से
हर तरह से तैयार हो जाओगे
मैं एकाएक ग़ायब हो जाऊँगी . . .!