अन्तिम झलक
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
साग्न स्टुडेंट टाउन से पैदल, मित्रों के साथ, मशहूर क्लब सेवेन ओस्लो शहर के मध्य यहाँ रात साढ़े ग्यारह बजे से क्लब में निःशुल्क प्रवेश के चलते आ गये थे।
डिस्कोथेक में जीवन्त संगीत ऑर्केस्ट्रा, रात में निःशुल्क प्रवेश और मित्रों और अनजान लड़कियों के संग नृत्य करना एक अलग आकर्षण था। मैं अकेला जो बिना मदिरा पिये पर आनन्द में और थिरकने में कोई कमी नहीं थी। उस जगह से आया था जहाँ आप चाहने वाले से अभिव्यक्ति भी नहीं कर पाते और यहाँ उन्मुक्त, बाँहों में बाँहें डालकर, साथ-साथ बदल-बदल कर, लड़के-लड़कियों का आपस में लोगों के साथ नाचने का अवसर किसे रास नहीं आता।
नाचते, उछलते-कूदते सुबह के पाँच बज गये। पहली बार इतनी देर तक नृत्य करने के कारण बहुत थक गया था। अतः सुबह पौने छह बजे पहली मैट्रो से वापस अपने निवास स्टुडेंट हॉस्टल जाने के बारे में विचार करता हुआ उस लड़की के साथ बाहर निकला जिसके साथ देर तक नृत्य कर रहा था। क्लब से साथ बाहर निकली और उसी बिल्डिंग में स्थित होटल में यह कहकर गयी कि बहुत जल्दी मिलते हैं। सामने ही मैट्रो स्टेशन था।
मैट्रो स्टेशन पर मुख्य द्वार पर प्रतीक्षारत था। मैट्रो आने वाली थी।
तभी एक सुन्दर-सी युवती मेरे सामने से हैंडबैग लिए हुए गुज़री। ‘यह तो वही लड़की है जिसके साथ मैं नृत्य कर रहा था।’ उसने मेरी तरफ़ देखा पर अनदेखा किए निकल गयी और उसकी एक झलक पाने के लिए मैं अवाक् देखता ही रह गया। वह चली गयी। मेरी मैट्रो भी आ गयी और मैं उसमें सवार हो गया।