अब मैंने दूसरी ओर देखा

15-06-2022

अब मैंने दूसरी ओर देखा

डॉ. खेमकरण ‘सोमन’ (अंक: 207, जून द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

घर की छत पर पत्नी पास बैठे पति को स्वादिष्ट खाना खिला रही थी। अचानक पेट में तेज़ दर्द होने के कारण उसने रोटी बनाना छोड़ दिया, और पेट पकड़कर वह वहीं लेट गई। उसने अपने पति की आस भरी नज़रों से भी देखा, लेकिन पति ने भद्दी सी गाली देते हुए उससे रोटी बनाने के लिए कहा। 

वह रोटी बनाने के लिए उठी . . . फिर उठी, परन्तु क़ामयाब नहीं हो सकी। तुरन्त ही पेट पकड़कर रोने-चीखने लगी। यही समय था जब पति ने उसको लात-घूसों से पीटना शुरू कर दिया, “उठ! रोटी बनाती है कि नहीं! उठ-उठ!”

मैंने काल की ओर देखा और कहा, “क्या माँ, बहन-बहुओं और स्त्रियों के प्रति यही तौर-तरीक़ा, व्यवहार और अनुशासन है तुम्हारा? ये तुम मुझे क्या दिखा रहे हो?”

काल बोला, “वही जो तुम देख रहे हो!”

काल की बात सुनकर मेरे ग़ुस्से का पारा चढ़ने लगा। मैं तुरन्त काल से भिड़़ गया। हम दोनों के बीच बहुत भयंकर युद्ध होने लगा। लगभग एक घण्टे के युद्ध के बाद काल मुझसे बुरी तरह हार गया और बोला, “दोस्त! तुम वाक़ई, काल अर्थात्‌ समय को जीत लेने वाले बन्दे हो! ऐसे व्यक्तियों की बहुत क़द्र करता हूँ। तुम जैसे बन्दों से ही दुनिया ख़ूबसूरत बनती है। मनचाहे रूप में चलती-ढलती है। बताओ, मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ?”

मैंने कहा, “बस . . . इस वाहियात दृश्य को बदल डालो! वह महिला अभी भी असहनीय पेट दर्द से कराह रही है और उसका नालायक़ पति ग़ायब है! अतिशीघ्र . . . बदलो इस दृश्य को।”

अब मैंने देखा घर की छत पर पत्नी, अपने पति को खाना खिला रही थी। बीच-बीच में पति और पत्नी एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा भी देते थे। अचानक पत्नी के पेट में तेज़ दर्द होने लगा। वह वहीं लेटकर चीखने-कराहने लगी। 

पति ने खाना छोड़कर तुरन्त उसको अपने गोद में उठा लिया। पत्नी ने एक बार पति की ओर देखा और कहा, “पहले आप खाना खा लीजिए . . . प्लीज़।” और हिम्मत बटोरकर फिर से रोटियाँ बनाने की कोशिश करने लगी। लेकिन पति ने उसकी एक नहीं सुनी। अगले ही क्षण, मैंने देखा कि चिन्तित पति अपनी पत्नी को लेकर अस्पताल पहुँच चुका है। डॉक्टर इलाज करते हुए कह रहे थे, “जैन्टिलमैन . . . तुम शाम को इन्हें घर ले जा सकते हो।”

अब मैंने दूसरी ओर देखा। समय अर्थात्‌ काल मुझसे काफ़ी दूर निकल चुका था। वह मुझे देखकर ज़ोर-ज़ोर से हाथ हिलाने लगा। मेरे हाथ भी बाय-बाय की मुद्रा में स्वतः ही हिलने लगे। 

3 टिप्पणियाँ

  • हमारी उचित शिक्षाएँ काल को बदल सकती है। कहानीमें इस पक्ष को छूना चाहिए था।

  • 24 Jun, 2022 10:40 AM

    जी ,काल तटस्थ दर्शा है , लेकिन व्यक्ति का कर्म उसके काल का निर्माता होता है ! काल को बदलना है तो कर्म को सँभालना होगा । नयी सोच और आपकी सकारात्मक लेखनी को नमन। बहुत बहुत शुभकामनाएँ….!

  • 15 Jun, 2022 10:16 AM

    बहुत खूब , काल ही परिवर्तन का कारण है।बधाई और परिवर्तन के लिए शुभेच्छाएं।

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