कमाल की लाईन है
संजीव बख्शीयहाँ मैं अपने जूते उतार
दस कदम चलता हूँ
घास पर खुले मैदान में
बैठ जाता हूँ
लगभग लगभग रोज
एक दिन मित्र भी साथ था
उसने भी देखा देखी
अपने जूते उतार दिए वहाँ
हम दोनों दस कदम चल कर बैठे
बातें करते रहे
मन के भीतर की शाँति जैसी
कुछ उसने कहा मुझसे
जो वह महसूस कर रहा था