कभी अंगार मुट्ठी में दबाकर देखिए साहब
बृज राज किशोर 'राहगीर'
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कभी अंगार मुट्ठी में दबाकर देखिए साहब।
उदासी के पलों में मुस्कुराकर देखिए साहब।
लगेगा एक नश्तर ने कलेजा चीर डाला हो,
उमड़ते अश्क़ आँखों में छुपाकर देखिए साहब।
मुहब्बत की कहानी में अगरचे पाइएगा कम,
वफ़ा की है तलब तो आज़माकर देखिए साहब।
सुबह से शाम तक आँखें रहें उसके दरीचे पर,
किसी दिन दीद की ये धुन लगाकर देखिए साहब।
नवाज़िश नाज़नीनों की कभी यूँ ही नहीं मिलती,
कि उनके नाज़-नख़रे भी उठाकर देखिए साहब।
न जाने किस मुसाफ़िर का सफ़र आसान हो जाए,
दिया हर रोज़ चौखट पर जलाकर देखिए साहब।