सृजनशील दो हाथ

03-05-2012

दो हाथ इंसान के
कर देते हैं सृजन,
दो हाथ हैवान के,
करते हैं संहार;
यही तो है संसार!
हिमालय से लेकर गंगा-सागर तक,
उत्तर से दक्षिण; पूरब से पश्चिम तक,
जहाँ भी देखोगे सृजन
याद आएँगे दो हाथ इंसान के!
 
हिरोशिमा-नागासाकी से लेकर
मुंबई के ताज और नरीमन हॉऊस तक
जहाँ-जहाँ भी देखोगे संहार का तांडव,
याद आएँगे दो हाथ हैवान के!
 
ये दो हाथ
मिट्टी में डालते हैं बीज
तो उग आती हैं फसलें दानों की
इंसान लड़ता है भूख के राक्षस से;
ये दो हाथ,
लेकर एटम बम और हथियार,
मचा देते हैं जब भीषण संहार
हैवान हँसता है लाशों के अम्बार पर!
 
सोचता हूँ मैं,
क्या ये दो हाथ ही हैं जिम्मेदार?
कब हो सृजन? कहाँ हो संहार?
 
नहीं, नहीं, मेरे मित्र!
हाथ तो हाथ हैं, सिर्फ़ हिलते हैं,
सृजन और संहार तो चिंतन में पलते हैं!
 
चिंतन जब करता है इंसान,
तब हँसता है सृजन,
खिलते हैं फूल, हँसती हैं फसलें!
 
चिंतन जब करता है हैवान,
तब अट्टहास करता है संहार,
जलती हैं बस्तियाँ, मरते हैं मासूम!
चिंतन सार्थक हो तो उगती हैं संस्कृतियाँ,
चिंतन विकृत हो तो जलती हैं संस्कृतियाँ!
 
इसीलिये युगों-युगों से
एक ही संदेश देती आयी है धरती,
अपनी संतानों को;
मैं तुम्हारी माँ हूँ मेरे पुत्रों !
जन्मा है तुम सबको कोख से अपनी,
और दिया है तुम्हे वरदान सृजन का!
चिंतन में ढालो सृजन, पुत्रों!
 
तब हाथों में हथियार नहीं होंगे,
कर्म के औजार होंगे
और तब तुम्हारे हाथो से उगेंगे फूल,
तब मैं दूँगी भरपूर फसलें दानों की,
तब भूख हार जायेगी तुमसे !
 
धरती का यह संदेश--
आज नहीं तो कल, ज़रूर सुनेगा हैवान भी,
क्योंकि भूख तो उसकी भी दुश्मन है,
संहार मिटाता है उसको भी!
 
फैलाना होगा सृजन का संदेश चारों ओर
सृजन का चिंतन बोना होगा सभी दिशाओं में,
तभी,हाँ! तभी, हारेगा हैवान,
तभी विजयी होगा इंसान!
और तभी सृजन करेंगे--
सृजनशील दो हाथ!
फिर से खिलेंगे मोहक फूल,
फिर से उगेंगी लहलाती फसलें
फिर से जीतेगी इंसानियत!

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