संशय है 
लेखक पर 
पड़े न कोई छाप 

पुरखों की सब धरीं किताबों 
को पढ़-पढ़ कर 
भाषा को कुछ नमक-मिर्च से 
चटक बना कर 

विद्या रटे 
बने योगी के 
भीतर पाप 

राह कठिन को सरल बनाये 
ख़ेमेबाज़ी 
जल्दी में सब हार न जाएँ 
जीती बाज़ी 

क्षण-क्षण आज 
समय  का 
उठता-गिरता ताप 

शोधों की गति घूम रही 
चक्कर पर चक्कर 
अंधा पुरस्कार 
मर-मिटता है शोहरत पर  

संशय है 
ये साधक 
सिद्ध करेंगे जाप। 

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